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बतीस सूत्रों में मूर्ति पूजा प्रतिबोधित हुए और प्रभवस्वामि के पास जैनदिता ग्रहण कर जैनाचार्य हुए।
(२५) श्री उत्तराध्ययन सूत्र ।
"गौतमस्वामी प्रसादमध्ये प्राप्तो निजनिजवर्णप्रमाणोपेताश्चतुर्विशति जिनेन्द्राणां भरतकारितप्रतिमा ववन्दे तासां चैव स्तुति चकार जगचिन्तामाणि जगनाह जगगुरु जगरक्खण
इत्यादि
'दशवाँ अध्ययन टीका' "तत्वभावत्या अन्तेपुरमध्ये चैत्यगृहकारितं तत्रेयं प्रतिमा स्थापिता तांच त्रिकालं सा पवित्रा पूजयति । अन्यदा प्रभावती राज्ञी तत्प्रतिमायां पुरो नृत्यति राजा च वीणां वादयति इत्यादि।
'अट्ठारवाँ अध्ययनटीका' "प्रत्याख्यानानन्तरं चैत्यवन्दनाकार्य
'उचर्त सवां अध्य० टीका (२६) श्री अनुयोगद्वार सूत्र"नाम ठवणा दव्व भाव इत्यादि
निक्षेपाधिकारे चार निक्षेप के अधिकार स्थापना निक्षेप में तीर्थंकरों की व आचार्य की स्थापना का विस्तृत उल्लेख है।
(२७) श्री नन्दीसूत्र में 'थुभं' विशाला नगरी में श्री मुनि सुबत तीर्थकर का स्तूप होना लिखा है।
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