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________________ ११३ बतीस सूत्रों में मूर्ति पूजा प्रतिबोधित हुए और प्रभवस्वामि के पास जैनदिता ग्रहण कर जैनाचार्य हुए। (२५) श्री उत्तराध्ययन सूत्र । "गौतमस्वामी प्रसादमध्ये प्राप्तो निजनिजवर्णप्रमाणोपेताश्चतुर्विशति जिनेन्द्राणां भरतकारितप्रतिमा ववन्दे तासां चैव स्तुति चकार जगचिन्तामाणि जगनाह जगगुरु जगरक्खण इत्यादि 'दशवाँ अध्ययन टीका' "तत्वभावत्या अन्तेपुरमध्ये चैत्यगृहकारितं तत्रेयं प्रतिमा स्थापिता तांच त्रिकालं सा पवित्रा पूजयति । अन्यदा प्रभावती राज्ञी तत्प्रतिमायां पुरो नृत्यति राजा च वीणां वादयति इत्यादि। 'अट्ठारवाँ अध्ययनटीका' "प्रत्याख्यानानन्तरं चैत्यवन्दनाकार्य 'उचर्त सवां अध्य० टीका (२६) श्री अनुयोगद्वार सूत्र"नाम ठवणा दव्व भाव इत्यादि निक्षेपाधिकारे चार निक्षेप के अधिकार स्थापना निक्षेप में तीर्थंकरों की व आचार्य की स्थापना का विस्तृत उल्लेख है। (२७) श्री नन्दीसूत्र में 'थुभं' विशाला नगरी में श्री मुनि सुबत तीर्थकर का स्तूप होना लिखा है। ८-२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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