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प्रकरण चतुर्थ
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के सदृश तथा महासती द्रौपदी की तरह श्रीतीर्थंकरों की मूत्ति की भक्ति पूर्वक पूजा की थी।
(१२) श्री उबवाईजी सूत्र (१३) श्री रायप्पसनीसूत्र ( इन चारों सूत्रों के मूल पाठ (१४)श्री जीवाभिगमन पिछले प्रकरणों में विस्तार (१५) श्रीजम्बुद्वीपपन्नति० ।
| पूर्वक आगये हैं। (१६ ) श्री पन्नावगासूत्र ‘ठवणा सच्चा' भाषापद. (१७) श्री सूर्य प्रज्ञाप्ति ! इन दोनों सूत्रों में राजधानी (१८) श्री चन्द्र प्रज्ञाप्ति । अधिकारे 'अट्ठसयजिण
पडिमाणं' पाठ आता है (१९) निरियावलिकासूत्र, कालि आदि दश राणियों जयन्ति मृगावती और द्रौपदी के मुवाफिक जिनप्रतिमा की पूजा की ।
(२० ) कप्पवडिंसियासूत्र पद्मादि श्रेणिक के दश पौत्रों ने वीतराग देवों की पजा की जैसे तुगियानगरी के श्रावकोंने की थो।
(२१) पुप्फीयासूत्र, सूर्याभदेव के सदृश शुक्रदेव बहुपुत्रा देवी ने प्रभु प्रतिमा की भाव भक्ति पूर्वक पूजा की।
.(२२ ) पुष्फचूलिकासूत्र श्री ह्रीं घृति आदि दश देवियों ने जिनप्रतिमा की पूजा की
(२३) विन्ही दशासूत्र में निषेढादि बारह श्रावकों के अानन्द के मुवाफिक जिनप्रतिमा की पूजा की।
(२४) दशवेकालिकसूत्र चूलिका 'सिजंभव गणहर जिण पडिमा दंसणेण पडिबुद्धा' शय्यम्भव भट्ट श्रीशान्तिनाथ की प्रतिमा को देखकर
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