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बत्तीस सूत्रों में मूर्ति पूजा
"ततोऽभयन प्रथम जिन प्रतिमा बहु प्राभूत
युताऽक कुमाराय प्रहिता" भावार्थ-इस पाठ में राजकुमार अभयकुमार ने प्राककुमार को प्रतिबोधनार्थ श्रीजिनप्रतिमा भेजी और उसके दर्शन से पाककुमार को जातिस्मरण शान हुआ और उसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ग्रहण कर मोक्ष पद प्राप्त किया।
(३) श्री-थानयांगसूत्र ! इन सूत्रों के मूल (४) श्रीसमवायांगसूत्र पाठ और अर्थपिछले(५) श्रीभगवतीसूत्र
प्रकरणों में आगये हैं। (६) श्रीज्ञातासूत्र (७) श्रीउपासक दशांगसूत्र
(इन दोनों सूत्रों में नगरों के (८) श्रीअंगददशांगसूत्र , वर्णन में उबवाईसूत्र के १९श्रीशनतरवासन सहश बहुला अरिहंत या
। पाठ है। (१०) श्री प्रश्न म्याकरण सूत्र "चयट्टे निजराही"
साधुओं के व्यावधिकार में यह पाठ पाया है और इसका अर्थ है कि किसी भी पैत्य-मंदिर-की पाशातना होती हो तो जैसे बने वैसे उसको दूर करे या करावे । जैसे स्थानायांगसूत्र में साधु संघ ( साधु साची भावक भोर भाविका) की वैयावर करने का उल्लेख है पर अजस्खामि जैसे दश पूर्वधरों ने ऐसा किया भी है।
(११) श्रीविपाकसूत्रद्वि० श्रु० के एशों अभ्ययनों में राजकुमार सुबाहु मादि अनेक भावक भाविकाएँ तुंगीयानगरी के भावों
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