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________________ प्रकरण चतुर्थ ११० -सीमंधर का आदेश लेते हो वह भी कल्पना मात्र ही है क्योंकि सीमंधर स्वामि वहाँ तोमौजूद नहीं हैं केवल उनकी ईशान दिशा में किसी प्रकार की कल्पना ही की जाती है । तो फिर साक्षात् स्थापना मानने में हट करना तो एक प्रकार का दुराग्रह ही है । अतएव जैसे जिनके अभाव जिनप्रतिमा की भावश्यकता है इसी भाँति प्राचार्य के प्रभाव में स्थापना प्राचार्य की जरुरत है। अब हम स्थानकमार्गीसमाजके माने हुए ३२ सूत्रों के अन्दर मुर्शिपजा विषयक सूत्रों में पाठ है उनका संक्षिप्त में दिग्दर्शन करवा देते हैं। (१) श्री आचार्रागसूत्र श्रु० २ ० १५ चतुदर्श पूर्व घर प्राचार्य श्री भद्रबाहु कृत नियुक्ति का पाठ । __अट्टवयमुजंते गयग्गपएवं धम्मचक्केया। पास रहावत्तणयं चमरुप्पयंव वन्दाम्मि ॥४॥ भावार्थ-अष्टापदतीथ, गिरनार तीर्थ, गजपद धर्मचक्ररतावर्ग और जहाँ चमरेन्द्र ने भगवान महावीर का शरणा ले सौधर्म स्वर्ग में गया उन सष तीर्थों को धन्दन करता हूँ । यह सम्यक्त्व की प्रशस्त भावना है अर्थात् इन तीथों की यात्रा करने से समकित निर्मल और पात्मा का विकास होता है। प्राचार्य भद्रबहुस्वामी के बनाये श्रीव्यवहारसूत्र बृहत्कससूत्र, दशाश्रुत स्कन्धसूत्र, हमारे स्थानकवासी भाई पत्तीससूत्रों में शामिल मानते हैं इसलिये यहां भद्रबाहुकृत नियुक्ति का उल्लेख करना युक्तियुक्त है । (२) श्री प्रयगडांगसूत्र श्रु० २ ० ६ श्री गन्धहस्ती आचार्य (वि० सं० २१४) कृत टीकानुसार प्राचार्य शीलांगाचार्य (वि० सं०९५१) कृत रीका। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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