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________________ १०९ स्थापनाचार्य का विधान "दुवालसावते कित्तिकम्मे प० तं. दुउणयं जहा जाय कितिकम्म बारसावय चउसिरं तिगते दुपवंसं एग निक्खमण।" . टब्बा-बारें आवर्त माहें ते कीर्ति-कर्म बांदणाफह्या भगवंते श्री वर्धमान स्वामि० ए ते कहे छे बे अवनत बेबेला मस्तक नमाड़वा गुरुनी स्थापना कीजे तेह थकी अऊट हाथ बेगला रही पडिकमीए. आउट हाथ मोही अविग्रह कहिये ऊँमा थका इच्छामिखमा समणो कहिये बिहु बांदणे बिहु बेला मस्तक नामाडिवे पच्छे अवप्रह मांही श्रांविये यथा जातमुद्रा, जन्म अवसरी बालकनी परे बलीटी भरी हाथ जोड़या रही कीर्ति-कर्म बांदणा कर आवत छ बेला गुरु ने पगे बांदणा कीजे 'अहोकायं काय' एपाठ कही बिहुवाला थइ १२ बारा आवतं यथा चोसरो ४ बेवजागुरु ने पगे मस्तक नमाड़िये । त्रीणगुप्ति मन वचन काया नी गुप्ति कीजे । उपवेस बी बेला बांदणा ने अर्थे अवग्रह मांही आवेने एकबार निखमण अवग्रह बाहिरि निकले पहिले वांदणे एकबार निकलो बीजे बेला गुरु पगे बेठोज बंदणो समापीए पाठ कही एह समवायांग वृति नो भाव । . लौंका०वि० संशो० समा० टब्बा सा० पृष्ट ३.५-३६ । . यदि कोई सजन कहे कि हम स्थापना नहीं रख कर श्री तीर्थङ्कर सीमंधर स्वामि का आदेश ले सकते हैं तो सममना चाहिये कि भरतक्षेत्र में शासन सीमंधर स्वामि का नहीं पर भगवान् महावीर के पट्टधर सौधर्म गणधर का है वास्ते उनकी स्थापना अवश्य होनी चाहिये तीर्थङ्कर सोमंधर के और भगवान महावीर के प्राचार व्यवहार क्रिया में कई प्रकार का अन्तर है और श्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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