SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण चतुर्थ ११४ (२८) श्री व्यवहार सूत्र 'जत्थय सम्मभावियाई चेइयाई पासेज्जा कप्पई से तस्संतिए बालोड़त्ता वा 'प्रथमोद्देश आलोचनाधिकारे' किसी साधु के दोष लगा हो और प्राचार्यादि गीतार्थ का अभाव हो तो वह साधु सुविहित प्रतिष्ठित जिनप्रतिमा के पास आलोचना कर सकता है। (२९) बृहत्कल्पसूत्र के भाष्य में मूर्ति विषयक प्रचूरता से अधिकार है। (३०) निशीथसूत्र की चूणि मे भी मूर्ति पूजा का वर्णन पाता है। (३१) दशाश्रुत स्कन्ध में राजगृहादि नगरियों का वर्णन है जिसमें भो उववाई सूत्र की भलामण दी है जहाँ 'बहुला अरिहन्त चेइया' यानि बहुत से अरिहन्तों के मन्दिर हैं। ___(२२) आवश्य कसूत्र में 'अरिहन्त चेइयाणि' x x आदि बहुत विस्तार से जिनमन्दिर जिन्प्रतिमा की पूजा का अधिकार है। पूर्वोक्त ३२ सूत्रों में कहीं सामान्य कहीं विशेष परन्तु जैन सूत्रों में ऐसा कोई भी सूत्र नहीं कि जिसमें जैन मूर्तियों का अधिकार न हो ? जैसे सामायिक पौमह वगैरह धार्मिक विधान होने पर भी उनका जितना अधिकार सूत्रों में नहीं है उतना अधिकार मूर्तिपूजा का है । इतना होने पर भी कई अज्ञ लोग कह देते हैं कि ३२ सूत्रों में मूर्तिपूजा का अधिकार नहीं है, वे पक्षपाती और शास्त्रों के अनभिज्ञ हैं उनको भी पूर्व दोनों प्रकरण ध्यान पूर्वक पढ़ने से ज्ञात हो जायगा कि जैन सूत्रों में मूर्तिपूजा खास मोक्ष का कारण बतलाया है । अब अगले प्रकरण में हम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy