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चैत्य शब्द का अर्थ जावे ऐसा भी लिखा है यह आपके ही घर का प्रमाण है फिर इनसे अधिक आप चाहते ही क्या हो ?
अब जो ऋषिजी ने चारण मुनियों की यात्रा में 'चेहयाई चंदई चैत्यवन्दन का असली अर्थ को बदला कर चैत्य का अर्थ 'ज्ञान' किया है यह वास्तव में ठीक है या केवज पक्षपात ही है ? देखिये खुद ऋषिजी ने अन्य सूत्रों में चैत्य शब्द पाया है यहां चैत्य का अर्थ प्रतिमा किया है उदाहरण लीजिये
१-उपधाई सूत्र में चेहया-चैत्य का अर्थ ज्ञान न करके यक्ष का मन्दिर किया है जो वास्तव में जैन मन्दिर था।
२-उवधाई सूत्र “पूर्णभह चेहए" का अर्थ किया है मंदिर,
३-प्रश्नव्याकरण सूत्र पहला अध्यायन पृष्ट ८ पर चैत्य का अर्थ स्वामीजी ने प्रतिमा किया है। . "-प्रश्नध्याकरण सूत्र के पहला अध्याय पृष्ट ११ पर चैत्यका अर्थ वेदिका किया है।
५-प्रश्नव्याकरण सूत्र पांचवां अध्ययन पृष्ट १२२ चैत्य का अर्थ प्रतिमा किया है। ६-इसी प्रकार स्वामि जेठमलजीने समकितसार नामक
-स्थानकवासी साधु जहां अरिहंत के चैत्य ( मन्दिर मूर्तियों) शब्द आता है उसका अर्थ मन्दिर मूर्ति न कर कहां ज्ञान कहाँ साधु कर बिरे भोले लोगों को बहका देते हैं पर ऐसा किसी सूत्र में नहीं लिखा है। ज्ञान को० नन्दी सत्र तथा भगवती सूत्र में पांच प्रकार का ज्ञान कहा हैन कि पांच प्रकार के चैत्य और सुयगडांग सूत्र में साधुओं के नाम बतलाये हैं पर वहां भी चैत्य को साधु नहीं कहा है इतना ही क्यों पा खास स्वामीनी चैत्य शब्द का भर्थ प्रतिमा करते हैं।
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