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चार प्रकार की पन्नति श्वरद्वीप में और कुण्डलगिरि में ४ एवं रूचकवरद्वीप में चार जिन मन्दिर है।
हमारे स्थानकवासी साधु यह भी नहीं कह सकते हैं कि हम द्वीपसागरपन्नतिसूत्र को नहीं मानते हैं क्योंकि श्रीमान् ऋषिजी ने अपने श्री स्थानायांगसूत्र में चार पन्नति सूत्र को माना हे यथाच-.
"चतारि परणाश्रो पण्णता तं जहा, जम्बद्दविपरणति चंदपएणति सूरपरणति, दीवमागरपएणति ।"
'स्था नायांग सूत्र चतुर्थ स्थान' हमारे स्था. भाई ! स्थानायांगसूत्र को गणधर कृत मानते हैं जिस में चार पन्नतिसूत्र कहा है उन में से तीन को मानना और एक को नहीं मानना इस का क्या अर्थ हो सकता है ? यदि मन्दिर मूर्वि के कारण ही नहीं माना जाता हो तो यह बड़ी भारी भूल है कारण
आप जिन तीन पन्नति सूत्रों को मानते हैं उनमें जम्बुद्वीप पन्नति सूत्र है उस में जम्बुद्वीप के ९१ पर्वतों पर सिद्धायतन एवं जिन प्रतिमाओं का सविस्तार वर्णन हैं उसको तो भगवान की वाणी मानना और जम्बुद्वीप पन्नति के सदृश दीपसागर पन्नति सूत्र में इक्षुकारादि पर्वतों पर मन्दिरों का अधिकार होने पर भी उसको न मानना यह अनभिज्ञता के सिवाय है क्या ? कुछ नहीं। क्योंकि नन्दीश्वर द्वीप में ५२ मन्दिर और सेकड़ों जिन प्रतिमाओं को मानना और रूचकवर या कुण्डलद्वीप के मन्दिर मूर्तियों का सूत्रोंमें मूलपाठ होने पर भी नहीं मानना इसका ही तो नाम पक्षपात और हट कदाग्रह है ? भले ऋषिजी श्राप अपनी
आत्मा को जरा पूछो कि जिस लौशाह के हम अनुयायी कहलाते हैं उस लौकाशाह के विद्वान अनुयायियों ने इन सूत्रों को
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