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तीर्थों के मन्दिरों का विवरण
५२ सिद्धायतन ( जिन मन्दिर) और उन मन्दिरों में सैकड़ों जिनप्रतिमाएं हैं उनकी यात्रार्थ चारण मुनि गये हो और अन्य भव्यों को यात्रा करने के भावों में वृद्धि हो इस गरज से शास्त्रकारों ने इसका वर्णन किया हो तो यह है भी यथार्थ कारण शक्ति के होते हुए तीर्थ यात्रा करना क्या साधु और क्या श्रावक सबका यह प्रथम कर्तव्य है। इसी उद्देश्य को लक्ष में रख असंख्य भावुकों ने बड़े २ संघ निकाल कर यात्रा की है शायद् हमारे ऋषिजी का जन्म जैन कुल में हुआ हो तो आपके पूर्वजों ने भी इस पवित्र कार्य में अवश्य लाभ लिया ही होगा। __ नन्दीश्वर द्वीप में वे प्रतिमाएं किसकी है इसके लिये खुद हमारे ऋषिजी क्या फरमाते हैं उसको भी सुन लीजिये ।
"तासिणं मणिपोढयाण उवरि चतारि जिणपडिमाओ सव्वरयणामइयाओ सपलअंक णिसण्णाश्रो थभाभि मुहीओ चिट्ठति तं रिसभा वद्धमाणा चंदाणपण वारिसेणा।"
- श्री स्थानायांगसूत्र ४-२ पृष्ट९३८ इस पाठ में जिनप्रतिमाओं का नाम ऋषभ वर्द्धमान चन्द्रानन और वारिसेण जो जैनतीर्थंकरों केशाश्वते नाम है, उन्हीं तीर्थकरों की मूर्तियां बतलाइ है जिनके नाम की माला एवं जाप हमारे स्थानकवासी भाई हमेशां करते हैं उन्हीं की मूर्तियों को वन्दन नमस्कार करने में वे लोग शरमाते हैं यही तो एक आश्चर्य की बात है अर्थात् अज्ञानता की बात है।
कितनेक जैनशास्त्रों के अनभिज्ञ लोग यह सवाल करते हैं कि चारणमुनि यदि यात्रार्थ गये और वह जिनमन्दिरोंकी एवं जिन
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