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अंबड श्रावक की वन्दन
लौकागच्छीय अमृतचंद्रसूरिकृत | स्था० साधु अमोल० हि० टन्धा ।
अनु०। - तट स्युकल्पै अरिहन्त साक्षात् फक्त हित और अरिहिंत वीतराग-अनंतज्ञानी अने अरिहंत | के साधु को ही वन्दन करना चैत्य जिन प्रतिमा, जिननी स्थापना । | नमस्कार करना यावत् सेवा ते वांदवा नमस्कार करवा कल्पै । । भक्ति करना कल्पता है। . श्री उववाइसूत्र पृष्ठ २६७। । श्री उववाइसूत्र पृष्ठ १६३ ..... ऊपर का 'अरिहंत चेइयाणि' पाठ का अर्थ लौकागच्छाचार्य तो अरिहन्त की प्रतिमा करते हैं तब ऋषिजी उसी पाठ का अर्थ अरिहन्तों के साधु करते हैं किन्तु चैत्य का अर्थ प्रतिमा होता है या साधु इस विषय में कई विद्वानों का और खास कर ऋषिजी के किये हुए अर्थ को हम आगे चलकर चारणामुनियों की यात्रा अधिकार में विस्तृत प्रमाणों द्वारा बतलावेंगे कि इसमें किसी प्रकार का संदेह या शंका नहीं कि अंबड़ ने अभिग्रह किया था कि मैं अरिहन्त और अरिहन्तोंकी प्रतिमाको ही वन्दन नमस्कार करूँगा- ऋषिजी पहिले चमरेन्द्र के अधिकार में 'अरिहंत चेइयाणि वा' का अर्थ जो जिनप्रतिमा होता है वहाँ छदमस्थ तीर्थकर किया, और आनन्द के अधिकार में अन्यतीर्थियों ने ग्रहण किया अरिहंत चैत्य (प्रतिमा) का अर्थ जैन का भ्रष्टाचारी साधु किया जब यहाँ अंबड़ के अधिकार में अरिहंतचैत्यका अर्थ साधु करते हैं आगे चलकर चारण मुनियों की यात्रा अधिकार में चेइयाई का क्या अर्थ करेंगे उसे भी देख लीजिये इससे इन लोगों की योग्यता का परिचय भली भाँति से विदित हो जायगा।
आगे चलकर तुगिया नगरी के श्रावकों की पूजा के अधि
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