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________________ प्रकरण चतुर्थ मान लिया उसको श्रावक वन्दन पूजन न करे तब स्वतीर्थियों के पास में रही हुई जिन प्रतिमा का वन्दन पूजन करना तो स्वतः सिद्ध है। ___जब ऐतिहासिकसाधनों के आधार पर विद्वसमाज में यह सिद्ध हो चुका है कि भगवान महावीर के मौजूदगी समय जैनों में मूर्तिपूजा एक धार्मिकअंग समझा जाता था और महाराज उदाई और श्रेणिक जैसों का मन्दिर बनवाना सिद्ध हो चुका जो हम आगे चलकर पांचवां ऐतिहासिक प्रकरण में विश्वासनीय प्रमाणों द्वारा सिद्ध कर बतलावेंगे, तब आनन्द जैसा धर्मात्मा और भगवान् महावीर के अग्रगण्य भक्त जैनमन्दिर मूर्तियों स्थापन करे और श्रीसमवायांगसूत्र में भगवान गणधरदेव उनकी संक्षिप्त नोंद करे इस हालत में पक्षपात और मताग्रह में प कर शंका करना सिवाय अनभिज्ञता के और क्या कहा जा सकता है। जैसे आनन्द श्रावकके मन्दिर मत्तियों का बनाना, एवं मूत्तिपूजा करना, हम ऊपर सिद्ध कर आये हैं इसी प्रकार उववाईसूत्र में अंबड़ श्रावक ने भी भगवान महावीर के पास श्रावक के व्रत ग्रहण करने के पश्चात् प्रतिज्ञा की कि आज पीछे मैं, अन्यतीर्थियों, अन्यतीर्थियों के देव हरिहलदरादि और अन्यतीर्थियों ने महण की हुई अरिहन्तों की प्रतिमा को वन्दन नमस्कार नहीं करूँगा। परन्तु अंबड पहिले सन्यासी था इसलिये वह और भी जोर देकर कहता है कि "गएणत्थ अरिहंत वा अरिहंत चेइयाणि वा वादता व नमसीत वा" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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