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चम्पा नगरी के मन्दिर
मूल में लिख कर उसे पाठांतर बतलाते हैं यह आपका भव भी रूपना है कि जैसा सूत्र में था पैसा लिख दिया तब ऋषिजी ने मूलपाठ से उस पाठ को निकाल कर फुट नोट में रख दिया तब नौकागच्छाचार्य ने अरिहन्तों के चैत्य-अरिहन्तों के मंदिर का अर्थ किया तब ऋषिजी ने यक्षादि के मंदिर का विपरीत अर्थ कर डाला शायद आपने आदि शब्द में अरिहन्तों के मंदिर होना समझ लिया हो क्योंकि खुल्लमखुला तो वे कहीं कैसी तथापि दोनों के अर्थ से यह स्पष्ट पाया जाता है कि चम्पानगरी में अरिहन्तों के बहुत से मंदिर थे इस हालत में यह क्यों कहा जाता है कि सूत्रों में जैन मंदिरों का अधिकार नहीं ? परन्तु अब तो यह बात ऐतिहासिक प्रमाणों द्वारा भी निश्चय होगई है कि भगवान महावीर के समय में राजा श्रोणिक ने मंदिर बनाया था जिसको हम आगे पांचवें प्रकरण में प्रमाणित कर बतलावेंगे:___ वास्तव में पूजा होती है पूज्य पुरुषों की, मूर्ति तो स्थापना निक्षेप है पर खुद भगवान महावीर के मौजूदगी में आपके भक्त लोग आपकी पुष्पादि से पूजा कर आत्म कल्याण करते थे और इस विषय के शास्त्रों में उल्लेख भी मिलते हैं । जरा ध्यान लगा कर देखिये____ "अप्पेगइया वंदणवातियं, अप्पेगइया पूयणवत्तियं” . लौकागच्छीय अमृत चन्द्र सूरि स्थाठसाधु अमोलखर्षिजी कृत कृत टब्वा
हिन्दी अनुवाद एकेक पूर्व काह्य (राजादि ) ते कितनेक भगवान् को बन्दन बांदिवास्तुति करवा तिणइज निमित । स्तुति करने को कितनेक भग
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