SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण चतुर्थ लौकागच्छीय आचार्य अमृत चंद्र सूरि कृत टब्बा के साथ मूलपाठ । आयरवंत चेड़या जुवड़ विविह साव बहुला अरिहन्त चेइय जणवए संणिवठ बहुला ( इतिपाडांतर ) coबार्थ जिण नगरीह आकरवंत - 1-सुन्दाकार चैत्यप्रासाद देहरा छाइ । वैश्याना विविध नाना प्रकार संनिवड पाडा छे बहुला कहतां घणा तीन नगरी छई, अरिहन्तना चैत्य प्रासाद देहरा घणा छेई (पाठान्तर ) श्री उववाई सूत्र पृष्ट २ Vo स्था० साघु श्रमोल खर्षि जी कृत हिन्दी अनु० के साथ Jain Education International मूलपाठ । श्रयरवंत चेझ्या जवह विविह सणिवा बहुला । फूट नोट में - अरिहन्त चेहया बहुला ( पाठांतर ) ऐसा पोठ भी कितने प्रतियों में है । हिन्दी अनुवाद आकारवंत - शोभायमान यक्षादि: के मंदिर भी बहुत हैं 1 श्री उववाई सूत्र पृष्ट: २ पाठांतर के मूलपाठ का अर्थ अरिहन्तों के बहुत मंदिर हैं यह अर्थ आपने नहीं किया है । स्था० साधु जेठमल जी ने अपने कल्पित विचारों के अनुसार 'अरिहन्त चेइया' का अर्थ "यक्ष का मंदिर" किया है उसी का ही अनुकरण ऋषिजी ने किया मालूम होता है। शायद अन्ध परम्परा इसीका ही नाम हो कि एक मनुष्य ने किसी कारण धोखा खाया हो तो उसके पीछे उसकी वंश परम्परा धोखा खाती ही जाय कि अरिहंत चेहया का स्पष्ट अर्थ अरिहन्तों के मंदिर होता है उसे यक्ष का मंदिर कह देना या लिख देना । लौका गच्छाचायें - अमृतचन्द्रसूरि 'अरिहंत चेइया' पाठ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy