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सुरियाभदेव की पूजा गिरिहत्ता, करयल पब्भुट्टइ, विप्पमुक्केण, दिब्ववरणेणं, कुसुमेणं, मुक्केपुप्फपुंजो वयारकलियंकरेतिकरेता, जिणपडिमाणंपुरत्तो, अत्थेहिं, सेएहि, रययामीहं, अच्छरसतंदुलहि, अछमंगलए, प्रालिहई तं जहा सोत्थियजावदप्पण । ६॥ तयाणंतरं चणं, चंदप्पहरयणं, विमलदंडकंचण मणिरयण, भात्तिचित्तं, कालागुरुपवरकुंदरुक्कतरुक्क धूव मधमघंत गंधूतमाणु चिठ्ठति, धूमवटि विणि मुयंतवरूलियम कडुछुयं पग्गहिययत्तेणं, 'धूयदाउणंजिणपडिमाणं,'अट्ठसविसुद्ध गंध जोतेहिं अपुरणरुतेहिं महावित्तेहिं संथूण इ,सत्तकृपयाइ पच्चोसक्कई २ ता, वामंजागुंअंचइ दाहिणजाधरणितलसि तिकठ्ठ, तिक्खत्तो मुद्धाणंधरणितलंसिीनच्चोडेतिरता पच्चन्नमइ इसिं पच्चून्नमित्ता करयल परिग्गहियंसिरसावत्तमत्थए अंजली कटू एवं वयासी नमोत्थणं अरहन्ताणं, जाव संपत्ताणं, वंदति णमंसई ।"
ऋ० अनुवाद-तब उस सुर्याभदेव के चार हजार सामानिक देवता यावत् सोलह हजार आत्मरक्षक देवता और भी बहुत सूर्याभ विमानवासी देवता देवियों में से कितनेकने हाथ में ( यहां उत्पलादि फूलों का अर्थ करना ऋषिजी ने न जाने क्यों छोड़ दिया) कलस ग्रहण किये हुये यावत् कितनेक ने धूप के कूडछे ग्रहण किये हुवे हृष्ट तुष्टित हुये सुर्याभदेव के पीछे चले जा रहे हैं ।१५। तब वह सूर्याभदेव चारहजार सामानिक देवता यावत् अन्य भी बहुत सूर्याभ विमानवासी देवता देवियों सपरिवारा हा सर्वऋद्धि मे युक्त यावत वादिंत्र के मणकार
. यहां मूल पाठको ही बदल दिया है, देखो मूल सूत्र ॥
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