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प्रकरण तीसरा
का त्यों लिखकर पाठकों को परमेश्वर की पूजा की ओर आक र्षित करेंगे कि सम्यग्दृष्टि जीव आत्म कल्याण के हेतु जिन प्रतिम को जिनवर समझ कर किस भक्ति भाव से पूजा करते हैं ।
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" तर ते सूरियादेवं चत्तारिसोमणियसाहस्मीओ, जाव सोलसायरक्ख देवसाहस्सी, अण्णेय बहवे सूरियाभ जाव देवीउय, अध्पेगइया उप्पलहत्थगया जाव सयसाहस्त्रपतयहत्थ गया, सूरियाभदेवं पित्रो २ समणुगच्छति । ततेणं सूरिया देव बहवेअभियोगिय देवाय देवीत्रांय, अप्पेगइयाकलसहत्थगया, जाव अप्पेगइया धूवकडूच्छुर्यहत्थगया, हठ्ठतुट्ठा जाव सूरियादेवं पिटुओ समणुगच्छंति | १५ | ततें से सुरियाभेदेवे, चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव ने हियं बहुहिं सुरियाभविमाणवासिहिं देवहिं देवीहिंय सिद्धिं संपरिबुडे, सव्विढिए, जाव वातियरवेणं, जेणेव सिद्धायणेतेणेवडवागच्छई २त्ता सिद्धायणपुरित्थि मिल्लेदारेणं अणुपवसति, जेणेवदेवच्छेदऐ जेणेव जिणपडि मात्र तेणेव उवागच्छई, जिणपडिमागं लोएपणामं करेति २ ता, लोमहत्थगं गिरहई, जिण परिमाणं, लोमहत्थ एपमज्जई २ त्ता, जिणपडिमा सुरभिगंगंधोदर रहाणेति २ ता, सरसेण गोसीसचंदणेणगायाणंत्र लिंपइ, जिणपडिमा त्राहियाइ देव दुसाईजुयलाई नियंसेइ, पुप्फोरुहणं, माल्लारुहणं, गंधाहरुणं, बनारुहणं, चुन्नारुहणं, वत्थारुहणं, आभरणा रुहणं, करेता आसतासत विउलवट्ट वग्धारिय, मल्लदामकलावंकोरेई कयग्गह
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