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जिन दाड़ों की भक्ति
को कामदेव की प्रतिमा पूजने का कहने वाले जरा भगवान् महो - चीर के वचनों को ध्यान पूर्वक पढ़ें या सुने कि वे देवताओं के जीताचार को किस कोटी में बतलाते हैं ।
"हं भंते । सुरियाभेदेवे, देवाणुप्पियं वंदामि जाव पज्जुवासामि ? सुरियाभाई | समयं भगवं महावीरं सुरियाभ देवं एव वयासी पुराणंमेय सुरियाभा । जीय मेयं सुरियामा । किच्चमेयं सुरियाभा । करणिज्जमेयं सुरियाभा । अभणमय सुरियाभा । अभरणमाय मयं सुरियामा । अरण भवणवासी चाणमंतर जोइस वमाणिया देवा अरिहन्ते भगवंते वंदंति मंसंति, ततो पच्छा साईं २ नाम गोयाईं साहेति तं पोराण मेयं सुरियाभा । जाव अब्भण्णाणयमेयं सुरियाभा ।
भावार्थ -- भगवान् महावीर सुरियाभदेव प्रति स्पष्ट शब्दों में कह रहे हैं कि हे सुरियाभ ! तीर्थङ्करों को वन्दन भक्ति करने का तुम्हारा पुराणा श्राचार हैं, जीताचार हैं, तुम्हारे पर्वज देवों ने किया है, तुमको करने योग्य हैं, पिछले तीर्थङ्करों ने देवताओं को आज्ञा दी और मैं भी तुमको श्राज्ञा देता हूँ । अब सोचना चाहिये कि भगवान् महावीर के ऐसे परमभक्त तीर्थङ्करों के अलावा कामदेव जैसों की वन्दन पूजन करें नमोत्थुणं देवे ? क्या यह बात हमारे ऋषिजी एवं स्थानकमार्गी भाइयों की अन्तरात्मा मंजूर कर लेगा ? कदापि नहीं ! हर्गिज नहीं !! स्पप्न में भी नहीं !!!
आगे चल कर हम सुरियामदेव के की हुई जिन प्रतिमा की विस्तृत पूजा का पाठ और ऋषिजी के हिन्दी अनुवाद को ज्यों
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