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________________ ११ तीर्थकरों को दाड़ो पूज कर अपना कल्याण समझते हैं इस विषय में शास्त्रकार क्या फरमाते हैं उसको भी सुन लीजिये____ "तेसुणं वयरामएस गोलवट्ट समुगोसु वहवे जिणस्स कहानो सरिणक्खिताओ सांचट्ठति ताओणं सुरियभस्स देवस्य अन्नसिं च बहुणं देवाणय देवीणय अच्चणिज्जाओ जावपज्जुवासणिज्जाओ" लौका० विद्वानों का टब्बा स्था. साधु अमोल. हिन्दी अनु ते बनमय गोल बाटली डावडा उन बज्रमय गोलडबों में विषई घणा तीर्थकरोंनी दाडो । बहुत जिनकी दाडो स्थाप रखी थापी थकी रह छई ने ते दाडो सुरि- हैं वे दाडो सूरियाभ देव के और थाभ देव नई तथा अनेरा पण घगा | भी बहुत से देव देवियों के देवो नई देवी नई वंदनादिक ई, ! अर्चन या वन्दन पर्युपासनीय हैं, अर्चन करवा योग्य छई पुष्पादि कई पूजवाई योग्य छई वांदवा योग्य छ । श्री. राज० प्र० सू० पृष्ठ १६० । श्री राज० प्र० सू० पृष्ठ १६० ___ इसी प्रकार श्रीभगवती सूत्र, दशवॉ शतक पांचवाँ उद्देशा में पूर्वोक्त दाडो की आसातना टालने का अधिकार भी है इससे भी देवता तीर्थंकरों की दाडी को पूज्य दृष्टि से देखते हैं पागे जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में भगवान् ऋषभदेव के निर्वाण होने के पश्चात् आपके शरीर का अग्नि संस्कार के समय, देवता तीर्थंकर ऋषभदेव की दाडो किस भक्ति भाव से ले जाते हैं वे स्वयं सूत्रकार यों फरमाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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