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प्रकरण तीसरा
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( २ ) कामदेव का नाम लेने मात्र से काम विकार पैदा होता है तब तीर्थङ्करों की मूर्त्तियों का दर्शन करते ही काम विकार दूर भागता है और शान्ति वैराग्य तथा आत्म विकाश होता है ।
(३) कामदेव की मूर्ति के पास कामी नर जाते हैं और काम विकार की ही प्रार्थना करते हैं तब जिनप्रतिमा को उपासना तीन ज्ञान संयुक्त सम्यग्दृष्टि चरमशरीरी महाविवेकी इन्द्रादि देव करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि तिन्नाणं तारयाएं, बुद्धा बोहिगाण, मुत्ताणं मोयगाणं, इत्यादि जन्म मरण मिटाने को और मोक्ष की प्रार्थना करते हैं।
( ४ ) कामदेव के शरीर ही नहीं होता है जब जिनप्रतिमा के शरीर का मान तीर्थकरों के शरीर सदृश जघन्य सातहाथ और उत्कृष्ट पाँचसौ धनुष्य का बताया है उन प्रतिमाओं को सिवाय प्रतिमा द्वेषियों के कौन कामदेव की कह सकता है ?
( ५ ) जिस स्थान में जिन प्रतिमा विराजमान हैं उस स्थान का नाम शास्त्रकारों ने "सिद्धायतन" कहा है और ये हैं भी यथार्थ क्योंकि वे मूत्तियों सिद्धों की हैं और जिस नमोत्थुर्ण द्वारा आज हम सिद्धों की आराधना कर रहे हैं उसी नमोत्थूणं द्वारा इन्द्रादि उन मूर्तियों की पूजा कर सिद्ध पद की आराधना कर रहे हैं अतएव शाश्वति जिनप्रतिमा तीर्थकरों की एवं सिद्धों की होने में किसी प्रकार का संदेह नहीं हो सकता है ।
सम्यग्दृष्टि देवताओं की उन पूज्य तीर्थंकर देवों प्रति कैसी भक्ति हैं तर्थकरों की मूर्तियां तो क्या पर उनके शरीर का यत्किचित् श्रवयव हाथ लगता है उसको भी वे पूज्य दृष्टि से
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