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शावति मूर्तियों का शरीर
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रत्नमय है, सुवर्णमय उरु - पिंडी है, कनकमय घुटने, कनकमय साथल, कनकमय गात्र-लष्टिका, तपाया सुवर्णमय नाभि, रिष्ट रत्नोमय रोमराजी, तपाया सुवर्णमय चच्च तपाया सुवर्णमय श्री वत्स - हृदयपर चिन्ह, प्रवालमय होट, स्फटिकमयदान्त, तपाया सुवर्णमय जिव्हा, तपाया सुवर्णमय तालुवा, कनकमय नासिका, नासिका के अन्दर की भूमि लोहिताक्षरत्नमय है, अंकरत्नमय आँखों के कोने हैं लोहिताक्षरत्नमय आँखों की रेखा, रिष्ट रत्नमय ऑंखों की कीकी, रिष्टरत्नमय आँखोंके भोपन, रिष्टरत्नमय समुह, कनकमय श्रवणा, कनकमय निलाड पट्टक, बारत्नमय मस्तक रक्त सुवर्णमय केसों की भूमि, रिष्ट रत्नमय शिर के बाल । श्री राज० प्र०सू० पृष्ट १३८-१४०
उपरोक्त मूर्तियों के शरीर वर्णन में तीर्थकरों के शरीर सदृश ऊंचाई, तीर्थकरों के समान पद्मासन, तीर्थंकरों के ही नाम और तीर्थंकरों के उच्चादर्श लक्षण ही हैं अतः वे मूर्तियों तीर्थंकरों की ही हैं परन्तु पक्षपात कैसा जबर्दस्त होता है कि मूलसूत्रों का स्वयं उपरोक्त अर्थ करते हुए भी ऋषिजो ने अपनी मनमानी नोट लगायी है कि यह शाश्वति जिनप्रतिमा तीर्थकरों की प्रतिमा नहीं किन्तु कामदेव की प्रतिमाऐं हैं यदि ऋषिजी कुछ देर के लिये पक्षपात के चश्मों को उतार कर सच्चे हृदय से विचार करें कि
(१) कामदेव अनंग ( शरीर रहित ) होता है तब जिन प्रतिमा का पैरों से शिर तक का वर्णन सूत्रकारों ने बड़ी खूबी से किया है जो मूलसूत्र और ऋषिजी का हिंदी अनुवाद हम ऊपर लिख आये हैं इस पर ध्यान देकर विचारें कि क्या ऐसी ध्यानमय मूर्तियां कामदेव की हो सकती हैं ?
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