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________________ ४७ चार तीर्थंकरों को मूर्तिय मुहता सरिणक्खिताप्रो पिड्डति तं, जहा, उसभा, बद्धमाणा, चंदाणणा, वारिसेण, ।" लौं का० वि० सं० टब्बार्थ । स्था० अमोलखर्षिजी कृत. ते मणिपिडि का ऊपरइ च्यार हिं० अनु० जिनप्रतिमाछई तेह जिनप्रतिमा उस मणिपीठिका के ऊपर तीर्थकर ने उचपणाइ प्रमाणछाइ | चार जिनप्रतिमा जिन के जितनी जघन्य सात हाथ उत्कृष्ट पांचसइ ऊँची प्रमाणोपेत पांकासनयुक्त धनुष्य प्रमाणछइ पद्मासनथुम स्थुभिका के सन्मुख बैठी है उन नेइ सहा/मुहड़ो करी बेडीछइ ते चारों के नाम ऋषभ, वर्द्धमान, केहनी छई उ० ऋषभ, वर्द्धमान, | चन्द्रानन, और वारिसेण हैं। चन्द्रानन, वारिसेण, एगइ नामइ | प्रतिमाछई। श्रीराज० प्र० पृष्ट १४४ श्रीराज० प्र० सूत्र पृष्ट १२८ पांचभरत क्षेत्र, पांचऐरावत क्षेत्र, एवं दशक्षेत्र में प्रत्येक अव सर्पिणी, उत्सर्पिणी काल में चौबीस २ तीर्थकर होते हैं। उसमें ऋषभ बर्द्धमान चन्द्रानन और वरिसेण ये चार नामवाले तीर्थकर अवश्य होते हैं। वर्तमान चौबीसी भरतक्षेत्र में प्रथम ऋषभदेव चरम वर्द्धमान, ऐरावत क्षेत्रमें प्रथम चन्द्रानन, और अन्तिमवारि सेण, तीर्थंकर हुए और भूत एवं भविष्यकाल में इन चार नाम के तीर्थकर हुए थे और होंगे इसी कारण शाश्वति जिनप्रतिमाएँ के ये चार नाम शाश्वत हैं। और मलसूत्र में ये चार प्रतिमाओं स्तूप के सन्मुख मुँह कर पद्मासन विराजमान हैं । क्या शाश्वति जिनप्रतिमाओं को कामदेव या अन्य देवताओं की मूर्तियों बतलाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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