SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण तीसरा ४६ "एत्थेणं अट्ठसयं जिणपडिमाणं जिणुस्सहेप्पमाण मेत्ताणं सरिणक्खित्तं चिठ्ठति ।" लोंकागच्छीय वि० सं० टब्बार्थ | स्था० साधु अमोलखर्षिजो कृ.हि. __ ते देवछंदा साहि एक सौ | उसपर एकसौआठ जिनकी आठ जिन प्रतिमा जिन जितनी ऊच प्रतिमा है जिनके जितनी ऊंची। पणइं गावइ ते प्रतिमा जघन्य सात | पर्याकासन से बेठी हुई वहाँ रही हैं हस्तनी उत्कृष्ट पांचसइ धनुष्य प्रमाणइ स्थापि थकी रहछई। श्रो राज. पृष्ट १६४ श्री राज० प्र० पृष्ट. १३८ स्वामीजी बतला सकेंगे कि किसी देवता एवं कामदेव के पांचसौ धनुष्य का शरीर था या वे कभी पद्मासन ध्यानलगाकरके भी बैठते थे ? परन्तु वे तो थीं जिन प्रतिमाएँ जो भगवान् ऋषभ देव की जिनका पांचसौ धनुष्यका शरीर और महावीरप्रमु की सात हाथकी अवगाहना है यह केवल इन तीर्थंकरोंके लिये ही नहीं है परन्तु प्रत्येक चौबीसी में पहिले और छैले तीर्थंकरों का शरीर इसी प्रमाण वाला होता है और इस प्रकार की ध्यानमुद्रा एवं पद्मासन तीर्थंकरों की मूर्तियों में ही होता है । श्रागे शाश्वति मूर्तियों के नाम क्या हैं इसको मूलपाठ से बतलायेंगे । जो स्तूप के चारों और मणिपीठिका पर बिराजमान हैं। 'तासिणं मणिपोढयाणं उवरिं चतारि जिणपडिमाओ जिणुस्सेहपमाणमेताओ संपलियकर्णिसरणाश्रो भाभि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy