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मणि पठिका पर जिन प्रतिमा
सब तीर्थकरों की है कामदेव की प्रतिमा बतलाने वाले जैनागमों से बिलकुल अनभिज्ञ हैं और इस प्रकार उत्सूत्र की प्ररूपणा कर पाप के अधिकारी बनते हैं। इतना ही क्यों पर इस मिथ्या प्ररूपणा के अन्दर शामिल होनेवाले भी इस वज्रपाप से कदापि नहीं बच सकते हैं आगे और देखिये :--
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' तेसिणं मणिपेढ़ियाए उवरिं एत्थेगम हेगे देवछंदाए सोलस जोयणाई आयाम विक्खं मेणं साइरेगाई सोलस जोयणाई उर्दू उच्चतणं सव्व रयणा मह जाव - पडिरुवे । "
इस पर टीकाकारों ने विस्तार पूर्वक टीका की है पर हमारे स्थानकमार्गी भाइयों का अधिक विश्वास टब्बा पर होने से मैं यहां पर लौकागच्छीय विद्वानों द्वारा संशोधित तथा स्वामी श्रमोलखर्षिजी कृत हिन्दी अनुवाद को तुलनात्मकदृष्टि से बतला कर पाठकों के सामने यह निर्णय रख देता हूँ कि लौंकाशाह के अनुयायी होने का दम भरनेवाले स्थानकवासी लोग लौंकागच्छियों की मान्यता से किस प्रकार पृथक् पथ पर जा रहे हैं । स्था० साधु अमोल खर्षिजो कृत हिन्दी अनुवाद
कागच्छीय विद्वानों द्वारा संशोधित टब्बा
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ते मणि पीठिकानइं उपरितियाँ मोटउ एकदेवछंद छई तेही सोलइ योजन लबेपणइ पहूल पाई. काहे क झाझेरो सोल इंयोजन उचोउ उचपणे, सर्व मई छाई, यावत् प्रतिरूप वाला छे ।
श्रीराजश्री
सूत्र पूष्ट १६४ ।
श्रीराज श्री सूत्र १३८ । आगे उस देवछंदा में जिनप्रतिमा का उल्लेख इस प्रकार हैं
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उस मणिपीठिका के ऊपर यहाँ एकबडादेवछंदा सोलह योजन का लम्बा चौडा कुछ अधिक सोलह योजन का ऊँचा सर्व रत्नमय यावत् प्रतिरूप है ।
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