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प्रकरण तीसरा
अथवा नास्ति रहः पूच्छन्नं किंचिदपियषां प्रत्यक्ष ज्ञानीत्व ते अर्हन्तः॥
स्थानीयांग सूत्र पृष्ट १११ मुर्शिदाबाद वाला - लौकागच्छीय विद्वान् संशोधित टब्बा में भी यही लिखा है जैसे कि-तीन प्रकारे जिन कहिया । अवधिनाणजिन, अवधिनाए सहित, मनःपर्यवनाण च्यारनाण सहित जे जिन, केवल नाण जिन, पांच नाण सहित ते जिन । x x x तीन अरिहंत कहिया ते कहैछे। अवधि नाणी अरिहन्त, मनःपर्यवनाणी अरिहंत, केवलनाणीअरिहन्त ।।
स्थानीयांग सूत्र पृष्ठ १९२ मु० वाला स्था० साधु अमोलखर्षिजीका हिन्दी अनुवाद ।
"तीन प्रकरकेजिन कहे हैं अवधिज्ञानीजिन, मन:पर्यवज्ञानीजिन, केवल ज्ञानी जिन, x x x तीन अरिहन्त-अवधि ज्ञानी अरिहन्त, मनःपर्यव ज्ञानी अरिहन्त, केवलज्ञानीअरिहन्त ॥
स्थानायांग सूत्र पृष्ट २६१ __ न तो मूलसूत्र में कामदेवादि देवों को अवधिजिन कहा है न टोकामें न लौंकागच्छीय विद्वान् संशोधित टब्बा में और न ऋषिजी के हिन्दी अनुवाद में कामदेवादि देवों को अवधि जिन कहा है परन्तु उपरोक्त मूलसूत्र, टीकाटब्बा और हिन्दी अनुवाद में तो तीर्थंकरों को ही अवधि जिन और अवधिअरिहन्त कहा है और वास्तव में ऐसा ही है इन पुष्ट प्रमाणों द्वारा यह प्रमाणित हो जाता है कि देवलोकादि में जो शाश्वति जिनप्रतिमा
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