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________________ प्रकरण तीसरा जब सत्रों में इस प्रकार के उल्लेख हैं तब वे लोग आँखें मुँह अन्धेरा क्यों करते हैं और वे लोग इस विषय में क्या युक्ति बतलाते हैं ? वे सब से पहिले श्री स्थानायांगजोसूत्र का सहारा लेकर भद्रिक जनता के सामने एक सूत्र का पाठ रखते हैं वह निम्नलिखित है। "तो जिणा पं० २० ओहिनाणजिणे, मणपज्जवनाणजिणे, केवलनाणजिणे । स्थाना० पृष्ट २६० इस पाठ में अवधिज्ञानी जिन को देख हमारे भाई कह देते हैं कि वे जिनप्रतिमाएँ अवधिजिनकी हैं। परन्तु वे सज्जन थोड़ा सा वष्ट उठाकर इस पाठ के आगे का पाठ देखते तो मालुम हो जाता कि अवधिजिन (कामदेव) इस आसन एवं मुद्रा में कभी बैठे थे कि शाश्वति जिनप्रतिमाओं को कामदेव की प्रतिमा कहने का दुःसाहस किया जाय। अब आगे का पाठ देखिये । ___ "तो अरहा पं० २० ओहि नाणअरहा, मणपज्जवनाणअरहा, केवल नाणअरहा । स्था० पृष्ट २६० जैसे तीनप्रकार के जिन कहा है वैसे ही तीनप्रकार के अरि हन्त भी बतलाये हैं। इसका मतलब यह है कि अरिहन्त माता की कुक्ष में आते हैं तब अवधिज्ञान पूर्वभवसे साथ में लाते है इसलिये गर्भ में अवतार लेने के समय से जब तक वे दीक्षा न ले वहाँ तक अवधिजिन एवं अवधि अरिहन्त कहलाते हैं और दोक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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