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________________ ४१ जैनागों में शाश्वति प्र. कार तथा टीकाकारों ने तीर्थंकरों की प्रतिमाएं बतलाई हैं । और इन्द्रादि सम्यग्दृष्टि तीन ज्ञान संयुक्त और महाविवेकी देवताओंने सत्रह प्रकार से पूजा कर नमोत्थुणं के पाठ से स्तवना को हैं उन्हीं इंद्रादि देवों ने भगवान से प्रश्न किये कि हम आराधो हैं या विराधी ? उत्तर में तीर्थंकरों ने आराधो होना बतलाया है। इससे सिद्ध है कि शाश्वति जिम प्रतिमाएँ तीथैकरों की हैं। पर स्वामीजी ने अपने हिन्दी अनुवाद में उन जिनप्रतिमाओं को अन्यदेव अर्थात् कामदेव की प्रतिमाएँ बतलाई हैं यह आप की अल्पज्ञता और मत्ताग्रहत्व ही है क्योंकि श्राप के ही अन्योन्य सूत्र पाठ और अनुवाद से यह प्रत्यक्ष पाया जाता है कि वे जिनप्रतिमाएँ तीर्थकरों की ही हैं। टीकाकारों का तो स्पष्ट मत है कि वे जिनप्रतिमाएँ तीर्थकरों की हैं पर हमारे स्थानकवासी भाई उन टीकादिको मूर्तिपूजक आचार्यों की कह कर उसको अप्रमाणिक कह देते हैं इसलिये मैं आज खासकर लौंकागच्छीय विद्वानों के टव्वा अर्थ और साथ में स्वामीजी का हिन्दी अनुवाद लिख कर बतलाऊंगा कि इन दोनों अनुवाद से ही वे शाश्वति जिनप्रतिमाएँ तीर्थकरों की हैं ऐसा सिद्ध होता है। १ देखो इसी प्रन्थ का दूसरा प्रकरण जिसमें वीगत् १७० वर्ष में आचार्य भद्रबाहु हुए उन्होंने नियुक्ति की रचना की। वि० सं० २१४ में आचार्य गन्धहस्ती ने टीकाएँ रची । वि० सं० ९३३ में आचार्य शीलाग सूरि ने, वि० स० ११२० में आचार्य अभयदेव हरिने टीकाए बनाई और वि० सं० १५६० में श्रीपार्श्व चन्द्रसर ने गुजराती भाषामें टव्वा बनाया वहाँ तक जो मूलसूत्र और पांचांगो मानने में किसी का भी मतभेद नहीं था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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