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________________ प्रकरण ती पाठ या अर्थ देखा बस उनको हीरो बदल कर देने में ही अपना पाण्डित्य समझ रखा है पर मर्तिपूजा विषय तो इतना विशाल और सर्वव्यापक है कि वो किसी प्रकार से छिपाया हुआ छिप नहीं सकता है जैसे उल्लू के आँखें मूंद लेने पर सूर्य का प्रकाश छिप नहीं सकता है। स्वामीजी के ३२ सूत्रों का अनुवाद पढ़ने से पाठकों को भली भाँति रोशन हो जायगा कि स्वामीजी की सूत्रों का अनुवाद करने की कैसी योग्यता है। भाग्यवशात् जैसी आपकी योग्यता थी वैसे ही आपको सस्ते भाव के पण्डित भी मिले । दूसरों के लिये तो क्या, पर वे अनुवादित सूत्र खासकर स्थानकवासी समाज में भी सर्वमान्य नहीं हुए हैं और कई लोग तो आज भी उनका सख्त विरोध करते हैं। इतना ही नहीं पर उन अनुवादित सूत्रों को अप्रमाणित भी घोषित कर दिया है जैसे कि स्वामि मणिलालजी लिखित "जैनधर्म का संक्षिप्त प्राचीन इतिहास" नामक पुस्तक को अखिल स्थानकवासी कान्फरेन्स की जनरल मीटिंग ने ता०१०-५-३६ को अहमदाबाद में अप्रमाणित जाहिर करदी थी अतएव आपकी इस अनाधिकारी बाल चेष्टा की सभ्यसमाज में सिवाय हाँसी के शेष कुछ भी कीमत नहीं है। हाँ, आपके अनुवाद में मूर्तिपूजा विषयक पाठों का अर्थ रद्दोबदल होने के कारण जब कभी मूर्तिपूजा विषयक चर्चा का काम पड़ता है तब कई अज्ञ लोग आप के हिन्दी अनुवाद के पन्ने अवश्य टटोलते हैं। जैनागमों में शाश्वति जिन प्रतिमाएँ हैं । उनको मूल सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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