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प्रकरण दूसरा भद्रिक अबोध जैनों को भ्रममें भी डाले । जब उनको थोड़ा बहुत मनुष्यत्व का भान होने लगा और टीकाएँ वगैरह की आवश्यकता हुई तो एक नई युक्ति घड़ निकाली कि मूलसूत्रों के साथ मिलती हुई टीकाओं को हम लोग मानते हैं । इसका यह अर्थ था कि जिस टोकामें मूर्तिपूजा का उल्लेख न हो उस टीका को हम मानते हैं। ___ संसार में ज्ञानकी उत्तरोत्तर वृद्धि हुई और थोडा बहुत प्रभाव हमारे स्थानकमार्गी भाइयों पर भी हुआ। उन्होंने संकीणता को वाडाबन्धी के बाहर कदम रखने का साहस किया और मूल ३२ सूत्रों के अलावा अन्य भागम तथा आगमों पर जो नियुक्ति टीका भाष्य चूर्णि वगैरह पूर्वाचार्य कृत साहित्य की और दृष्टि डालकर अवलोकन किया जिसमें सबसे पहला नम्बर स्थानक मार्गी समाज के धुरंधर विद्वान शताविधानी मुनि श्री रत्नचन्द्रजी का है कि आपने अर्धमागधी कोश बनाने में नियुक्ति टोकादि बहुत से ग्रन्थों का आश्रय लिया तथा स्था० मुनिश्री मणिलालजी ने प्रभुवीर पट्टावलि' नाम की पुस्तक रचनेमें ३२ सूत्रों के अलावा कई ग्रन्थों का आधार लिया और स्था० पूज्यश्री जवहरलालजी महाराजने तेरहपन्थियों का खण्डन में 'सद्धर्ममण्डन' नामक ग्रन्थ बनाया जिसमें तो खूब प्रचूरतासे नियुक्ति टीका चूर्णि भाष्य दीपका वगैरह के अवतरण दिये हैं आपने अपने पूर्वजों की संकीर्णता को तिला जली देकर मूल ३२ सूत्रोंसे मिलती हो चाहे ३२ सूत्रोंमें जिसबात की गन्ध तक न हो उन टीकाओं को भी स्वीकार करली है । यदि उन अवतरणों का उतारा किया जाय तो एक खासा ग्रन्थ तैयार हो जाय परन्तु मैं मेरे पाठकों के अवलोकनार्थ उस 'सद्धर्म
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