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________________ ३३ जैनागमों की प्रमाणिकता का सिद्धान्त तो इतना सर्वव्यापी है कि इतना प्रपंच रचने पर भी यह छिपाकर नहीं रक्खा जासका । वास्तव में लौंकामत एवं स्थानकवासी समाज में बतीस सूत्रों की मान्यता न तो ३२ सत्र सच्चे और शेष सत्र भूटे और न मूर्ति मान्य एवं अमान्य के कारण हुइ है क्योंकि ३२ सूत्र सच्चे और शेष भूटे कहे उतना ज्ञान एवं प्रमाण न तो लौंकाशाह के अनुयायियों के पास था और न उन्होंने ऐसा कहा भी था दूसरा मूर्तिपूजा मान्य या अमान्य का कारण भी नहीं था क्योंकि मूर्तिपूजा विषयक पाठ तो ३२ सूत्रों में भी विद्यमान हैं। ___परन्तु ३२ सूत्रों को मानने का कारण तो कुछ ओर हो था। क्योंकि लौकाशाह के मौजुदगी में जैनागम प्राकृत भाषा (अर्धमागधी) में और टीकाएँ संस्कृत में थीं जिसका थोड़ा भी ज्ञान लौकाशाह को नहीं था कि वह जैनगामों को पढ़ कर उस को मान्य रक्खे या न रखे । लौकाशाह के देहान्त के बाद आपके अनुयायियों को श्रीपार्श्वचन्द्रसूरी कृत गुर्जर भाषानुवाद के जितने सूत्र मिले उतनों को ही उन्होंने अपनाये, उन सूत्रों की संख्या ३२ की थी। बस लौकाशाह के अनुयायियों में यह मान्यता सजड़ रूढ हो गई की हम ३२ सूत्र मानते हैं जब ३२ सूत्रों के विवरण में उनकी मान्यता के विरुद्ध में उल्लेख बताये जाने लगे तो उन्होंने कह दिया कि हम मूल सत्रों के अलावा टीकाएँ वगैरह नहीं मानते है फिर मूल सूत्रों में ऐसे पाठ आये कि जिनसे उनका मत निर्मल होने लगा तब उन्होंने मूलसूत्रों के अर्थ जो प्राचीन टोकाएँ तथा श्रीपार्श्वचन्द्रसूरि कृत टब्बा में था उनको भी बदलाने की कोशिश एवं मिथ्या प्रयत्न करना शुरू किया और कितनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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