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________________ जैनागमों की प्रमाणिकता "शास्त्रपरिक्षा विवरणमति बहु गहनं च गन्धहस्ती कृतं ।। तस्मात् सुखबोधार्थ गृणाम्यहमजसा सारं ॥ ३ ॥ श्री भाचारांग सूत्र पृष्ठ ३ इस अवतरण से स्पष्ट सिद्ध होता है, कि शीलांगाचार्य से पूर्व गन्धहस्तिसूरि की टीका थी, किन्तु वह क्लिष्ट और विस्तृत थी, अत: शीलांगाचार्य ने उसे स्वल्प तथा सरल बना डाला। गन्धहस्तीआचार्य का समय, वीराब्द की सातवीं शताब्दी माना जाता है और उस समय दश पूर्वधर विद्यमान भी थे । भागमों की टीका करना, कोई सामान्य-ज्ञानवाले मनुष्यों का कार्य नहीं था। इस महान कार्य के लिये तो बड़े धुरन्धर एवं अगाध-ज्ञानवाले महापुरुषों को आवश्यकता थी। यदि, गन्धहस्तीओचार्य पूर्वघर हों, तो यह टीका पूर्वधरों की रची हुई मानने में किसी भी तरह शंका को स्थान नहीं मिल सकता । कारण, कि गन्धहस्ती प्राचार्य के ३००वर्ष पश्चात् देवद्धिगणि क्षमाश्रमण हुए, जिन्होंने भागमों को लेखनीबद्ध किया और नन्दीसूत्र की रचना की। यदि, उन्हें माना जाता है, तो गन्धहस्तीभाचार्य की टीका तो उनसे ३०० वर्ष पूर्व की बनी हुई है, अतः उसे तो और अधिक प्रमाणिक मानना चाहिये। (५) आचार्य गन्धहस्तीसूरी की टोका भी कालक्रम से साधुओं को कठिन प्रतीत होने लगी, तब वि० सं० ९३३ में श्री शीलांगाचार्य ने पूर्व टीका को स्वल्प-विस्तारवाली तथा सरल बनाई थी। इनमें श्री आचारांग और सूत्रकृतायांग इन दो अंगों की टीका उपलब्ध है, शेष नौ अंगों की टीका इस समय नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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