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प्रकरण दूसरा
२६ है, यह कितने दुःख और खेद की बात है। वे लोग कभी तो कहते हैं कि हम इतने सूत्र मानते हैं, शेष नहीं और कभी कहते हैं, कि हम मूल सूत्र मानते हैं, पर नियुक्त, टीका, आदि को नहीं मानते। शायद उन लोगों ने आगम और नियुक्त तथा टीका
आदि को बच्चों का एक खेल ही समझ लिया है। बात है भी ठोक । जिसे इतना ज्ञान ही न होगा, वह इसके अतिरिक्त
और तो कर ही क्या सकता है ? यहाँ, मैं जरा इस बात को स्पष्ट कर देना चाहता हूँ, कि आगम और आगमों के विवरण किस-किस समय बने तथा इससे शासन को क्या हानि-लाम हुआ ?
“ अत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गुत्थइ गणहरा" (१) अरिहन्त देव ने, आगम अर्थरूप में फरमाये ।
(२) उसी अर्थ को गणधरों ने सूत्र रूप में संकलित कर लिया।
(३) उन्हीं सूत्रों पर वीरनिर्वाण की दूसरी शताब्दी में चतुर्दशपूर्वधर आचार्य भद्रबाहुसूरि ने नियुक्ति को रचना कर सम्बन्ध को संगठित किया।
(४) गणधर देवों के संकलित किये हुये सत्रों पर विक्रम की तीसरी शताब्दी में प्राचार्य गन्धहस्तिसूरि नै विस्तृत-टीका रचकर सूत्रों में रहे हुए गूढ-रहस्य को सुगम्य बना, सर्व साधारण का महान् उपकार किया। श्रीगन्धहस्तीप्राचार्य को टीका इस समय विद्यमान नहीं है, पर शीलांगाचार्य ने अपनी टोका में यों फरमाया है, कि
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