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________________ प्रकरण पहिला प्रकरण का सारांश (१) मूर्तिपूजा के सर्व प्रथम विरोधी, मुस्लिम मत के संस्थापक हज़रत पैग़म्बर मुहम्मद थे, परन्तु समयान्तर में इनके अनुयायी भी अपनी मसजिदों में पीरों की श्राकृतिएँ बना उन्हें पुष्प धूपादि से पूजने लगे । ताजिया बना कर उनके सामने रोना पीटना करने लगे । तथा यात्रार्थ मक्के मदीने जाकर वहाँ एक गोल काले पत्थर का चुम्बन कर अपने कृत कमों का नाश मानने लगे । क्या यह मूर्तिपूजा नहीं है ? अपितु श्रवश्य है । (२) मूर्त्तिपूजा नहीं मानने वाले ईसाई अपने गिरजाघरों में जाकर ईसामसीह की शूली पर लटकती हुई मूर्त्ति ( क्रास ) स्थापित कर उन्हे पूज्य भाव से देखते हैं । द्रव्य भाव से उनकी पूजा करते हैं। पुष्पहार चढ़ते हैं ! क्या यह मूर्तिपूजा का प्रकारान्तर नहीं है ? आज यूरोप के भूमि गर्भ से पाँच २ हजार वर्षों की नाना देवी-देवताओं की पुरानी मूर्त्तिएँ मिलती हैं। तथा यूरोप के प्रत्येक प्रान्त में किसी न किसी प्रकार से मुर्तिपूजा की जाती है । क्या यह सब मूर्तिपूजा का रूपान्तर नहीं है ? १८ (३) कबीर, नानक, और रामचरण आदि मूर्ति विरोधियों के अनुयायी भी आज अपने २ पूज्य पुरुषों की समाधिएँ बना कर उनकी पूजा करते हैं। भक्त लोग उन स्मारकों के दर्शनार्थ दूर दूर से नाना कष्ट उठा उन समाधियों के पास इकट्ठे होते हैं । पुष्पादि पूजनीय पदार्थों से उन पर श्रद्धाञ्जलि चढाते हैं । यह भी तो मूर्तिपूजा की ही क्रिया का एक समर्थन है । ( ४ ) स्थानकमार्गी लोग अपने पूज्य पुरुषों की समाधि, पादुका, मूर्त्ति, चित्र फोटो बनवा कर उनकी उपासना करते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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