________________
९
मूर्ति पूजा की प्राचीनता
चाहता हूँ कि लौंकाशाह एक जैन कुल में पैदा हुए तो फिर उन पर मुस्लिम संस्कृति को प्रभाव कैसे पड़ा ? इस विषय में मैं लौकरशाह के समकालीन प्रथकारों के उल्लेख यहां उद्धृत करता हूँ । पाठक ! इन्हें ध्यान से पढ़ें ।
श्रीमान लौकाशाह के जीवन के विषय में भिन्न २ लेखकों ने भिन्न २ उल्लेख किए हैं। परन्तु "लौंकाशाह का जैन यतियों द्वारा अपमान हुआ" इसमें सब सहमत हैं। क्योंकि इसके बिना त्रिकाल पूजा करने वाले लौंकाशाह का सहसा मन्दिर - मूर्तियों के विरुद्ध होना कदापि सिद्ध नहीं होता है । और जब एक ओर लोकाशाह का अपमान हुआ, और दूसरी ओर उन्हें मुसलमानों का सहयोग मिला तो लौकाशाह स्वकर्त्तव्य भ्रष्ट हुए हों इसमें आश्चर्य करने की कोई बात नहीं है। देखिये -
( १ ) वि० सं० १५४४ के आस-पास श्रीमान् उपाध्याय कमलसंयम ने अपनी सिद्धान्त सार चौपाई में लिखा है कि:" हवई हुऊ पीरोज्जिखान, तेहनई पातशाह दिई मान । पाड देहरा नई पोसाल, जिनमत पीडई दुष्मकाल ॥ लुंका नेइ ते मिलिय संयोग, ताव मांहि जिम शीशक रोग ॥
X
X
x
इस लेख से पाया जाता है कि लौंकाशाह पर मुस्लिम संस्कृति का बुरा प्रभाव पड़ा था और लौंकाशाह का मत चल पड़ने में मुसलमानों की सहायता थी ।
( २ ) वीर वंशावली नामक पटावली जो जैन साहित्य संशोधक त्रमासिक पत्रिका वर्ष ३ अंक ३ पृष्ट ४९ में प्रकाशित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org