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आगरा
प्रमुख श्रावक सूरिजी की सम्मति ले पर्युषणों में जीव हिंसा बन्द के लिए बादशाह के पास गये । बादशाह ने पूछा कि सूरिजी ने मेरे लिए आज्ञा दी है तो श्रावकों ने कहा कि बादशाह ने पर्युषणों में जीव हिंसा बन्द के लिए निवेदन किया है । बादशाह ने आठ दिन तक हिंसा बन्द रहे इस का फरमान लिख दिया । सम्वत् 1639 (सन् 1582 ) के पर्युषण के आठ के लिए यह घोषणा हुई थी' हीर सौभाग्य काव्य और जगद्गुरु काव्य में उल्लेख नहीं है । कल्याण विजयजी की तपागच्छ पट्टावली में इन आठ दिनों विवरण मिलता है 2
इस
सम्वत् 1639 (सन् 1582) का चतुर्मास पूर्ण होने पर सूरिजी शौरीपुर की यात्रा करके पुनः आगरा गये । इसी समय की भेंट में बादशाह ने सूरिजी से अपने कल्याण के लिए कोई सेवा याचना की । सूरिजी जो उद्देश्य लेकर गन्धार से चले थे उसे पूरा करने के लिए हमेशा अवसर की तलाश में रहते थे । समय भी सुअवसर देखकर सूरिजी ने बादशाह से पिंजड़ों में बन्द पक्षियों को मुक्त करने के लिए कहा। बाहशाह ने सूरिजी के इस अनुरोध का पालन किया और साथ ही फतेहपुर सीकरी के डाबर तालाब में मछलियां न पकड़ने का हक्म जारी किया | इस बात का उल्लेख "हीर विजय सूरिरास, भानुचन्द्र गणिचरित और जैन एतिहासिक गुर्जर काव्य संचय में भी मिलता है
हीरसौभाग्य काव्य में देवविमल गणि ने भी इसकी सालाब जो अनेक प्रकार की मछलियों से भरा हुआ था, निषेध कर दिया
पुष्टि की है कि डाबर मछलियां पकड़ने का
किन्तु हीरसोभाग्य में इस पद्म की टीका में श्रीदेव विमलजी ने ही प्रेरणा स्वरूप श्री शान्तिचन्द्र जी का नाम लिखा है, स्वयं शान्तिचन्द्र मुनि ने अपने "कृपारस कोष” नामक काव्य में श्री हीरविजयसूरि जी की प्रेरणा से किये गये
1. सूरीश्वर और सम्राट - कृष्णलाल वर्मा पृष्ठ 123 2. तपागच्छ पट्टावली - कल्याण विजयजी पृष्ठ 232 3. हीरविजयसूरिरास - प. ऋषभदास पृष्ठ भानुचन्द्रगणिचरित - भूमिका लेखक पृष्ठ 72
जैन एतिहासिक गुर्जर काव्य संचय श्री जैन आत्मानन्द सभा भावनगर पृष्ठ 201
4. हीरसौभाग्य काव्य सर्ग 14, श्लोक 195
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128, ढाल पांचवी, अगरचन्द्र भंवरलाल नाहटा
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