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अहिंसा का पालन कौन करेगा ? जिसके हृदय में दया होगी वहीं । इसलिए दय यह अन्तःकरण के भावों का नाम है । दुखी को देखकर के अपने हृदय में होना, यह दया है । अथवा मेरे इन शब्दों पर दूसरों को दुख होगा ऐसा विचा होना उसी का नाम दया है । इस तरह अहिंसा और दया पर सूरिर्ज के विचार सुनकर बादशाह उनके प्रति जन्म-जन्मान्तर के लिए आभार हो गया ।
तत्पश्चात् बादशाह और सूरीजी के बीच धार्मिक चर्चा हुई जिसका विस्तृत विवरण हीर सौभाग्य काव्य के सर्ग 13 एवं 14 में मिलता है । इस चर्चा से बादशाह
बादशाह को विश्वास हो गया कि सूरिजी कोई असाधारण महापुरुष हैं इसलिए उसने सूरिजी से पूछा - "मेरी मीन राशि में शनिचर की दशा बैठी है लोगों का कहना है कि यह दशा बहुत कष्ट देने वाली होती है आप ऐसी कृपा करें जिससे यह दशा मिट जाये । इस पर सूरि जी ने कहा यह ज्योतिष का विषय है जबकि मेरा विषय धर्म है इसलिए मैं इस विषय में कुछ भी कहने में असमर्थ हू बादशाह ने कहा मेरा ज्योतिष के साथ सम्बन्ध नहीं है आप मुझे कोई ऐसा ताबीज, यन्त्र मन्त्र दो जिससे मुझे इस ग्रह से शान्ति मिले, सूरिजी ने कहा, वो भी हमारा काम नहीं है । आप सब जीवों पर रहम नज़र कर अभयदान दोगे तो आपका भला होगा निसर्ग का नियम है कि दूसरे की भलाई करने वालों क अपनी भलाई होती है । इस तरह बहुत अनुनय, विनय करने पर भी जब सूरिजी अपने आचार के विपरीत कार्य करने को तैयार न हुए तो बादशाह बहुर प्रसन्न हुआ ।
सूरिजी के चरित्र और पांडित्य का बादशाह पर गहरा प्रभाव पड़ा । बाद शाह के पास पदमसुन्दर नामक साधु का ग्रन्थालय था उसने सूरिजी से उ पुस्तकों को ग्रहण करने की प्रार्थना की । सूरिजी ने मना किया मगर बादशा के बहुत आग्रह करने पर पुस्तकें लेकर अकबर के नाम से आगरा में पुस्तकालभ की स्थापना कर उन पुस्तकों को वहां रख दिया" सूरिजी ने कहा जब ह पुस्तकों की जरूरत होगी, तब हम पुस्तकें मंगवा लेगें। सूरीवर जी का ऐसा त्या! देखकर बादशाह के मन पर बहुत प्रभाव पड़ा ।
इस तरह बादशाह और सूरिजी की प्रथम भेंट समाप्त हुई, तत्पश्चा सूरिजी चातुर्मास के लिए आगरा पधारें । पर्युषण के दिन निकट आ
1. विजयप्रशस्ति काव्य-पण्डित हेमविजयगणि सर्ग 9 श्लोक 42
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