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( 55 ) तर दिया कि त्यागियों के लिए धातु का स्पर्श करना सस्त मना है । अब बाद. हि असमंजस में पड़ गया कि सूरिजी को कहीं बिठाये कि इतने में सूरिजी wो अपना ऊनी 'आसन बिछाकर शिष्यों सहित बैंठ गर्थे । बादशाह भी सूरिजी सामने ही यथोचित आसन पर बैठ गया। कुशलक्षेम पूछने के पश्चात् बादशाह रा पूछे जाने पर सूरिजी ने जैन धर्म के बड़े-बड़े 'तीर्थी के नाम शत्रुत्जय, मिरनार, बू सम्मेत शिखर और अष्टापद आदि बताये अब अकबर ने जिस उद्देश्य सूरिजी को बुलाया था यानि धर्मोपदेश के लिए, उन्हें चित्रशाला के कमरे & गया। सामान्य उपदेश के बाद बादशाह ने सूरिजी' से 'ईश्वर और खुदा भेद पूछा । सूरिजी ने बताया कि ईश्वर और खुदा में नाम मात्र के अलावा तविक कोई भेद नहीं है । और वास्तव में देखा जाये तो यह भेद भी जीवों कल्याण के लिए ही है क्योंकि विचित्र रूपा खलु चित्त वृत्तयः अर्थात् जीवों की उत्तवृत्तियां अनेक प्रकार की हैं। कोई किसी नाम से खुश रहता है तो. कोई सी नाम से । इसी तरह महापुरुषों के भी अनेक नाम हैं । देव, महादेव, शिव कर, हरि, ब्रह्मा, परमेष्टी, स्वयंभू, त्रिकालविंद, भगवान, तीर्थकर, केवली, निश्वर, अशरीरी, वीतराग आदि ईश्वर के अनेक नाम हैं इन नामों के अर्थ
तो किसी को विवाद नहीं सिर्फ नामों में ही विवाद है ईश्वर 18 दूषणों से हत होता है, ईश्वर प्रणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान; या, लोभ, राग, द्वेश, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, रति अरति, परपरिवार, यामषावाद, मिथ्यात्वशल्य, इन अठारह दूषणों में से एक भी दूषण होने पर उसे हवर नहीं कहा जायेगा। अन्त में सूरिजी ने ईश्वर का संक्षिप्त स्वरूप इस
र बताया कि__ "जिसमें क्लेश उत्पन्न करने वाला “राग" नहीं है शांति रूपी काष्ट को
ने वाली अग्नि के सम्मान "वैष" नहीं है। शुद्ध सम्यम् ज्ञान को नाश करने it और अशुभ आचरणों को बढ़ाने वाला “मोह" नहीं है और तीन लोक में जो
मामय है वही "महादेव" है, जो सर्वज्ञ है, शाश्वत सुख का भोक्ता है और हुने सब तरह के कर्मों को भय करके मुक्ति पाई है तथा परमात्म पद को
किया है वही "महादेव" अथवा "ईश्वर" है । दूसरे शब्दों में कहें तो ईश्वर होता है जो जन्म, और मृत्यु से रहित होता है जिसके रूप, रस गधि और नहीं होते है और जो अनन्त सुख का उपयोग करता है"।
बादशाह के पूछने पर कि ईश्वर एक है या अनेक ? सूरिजी ने बताया कि
1. सूरीश्वर और सम्राट-कृष्णलाल वर्मा द्वारा अनूदित पृष्ठ 116-117
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