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(54) संगत प्रभाणों द्वारा खण्डन-मंडन करते हुए दिया । सूरिजी के विचारों से अबुलफजल बहुत प्रभावित हुआ" भानुचन्द्र गणिचारित से भी इस बात का विवरण मिलता है कि अकबर से पहले सूरिजी की भेंट अबुल फजल से हुई । "मृतों का पुनरुत्थान" और "मुक्ति" इन दो प्रश्नों पर दोनों में चर्चा हुई। सूरिजी, ने ईश्वर, का वास्तविक स्वरूप बताया और कहा कि सुख दुख का देने वाला ईश्वर नहीं बल्कि जीव में कम है। अबुलफजल सरिजी के विद्वतापूर्ण तों से बहुत प्रभावित हुआ।
बादशाह ने अपने काम से निवृत हो दरबार में आते ही सूरिजी को अबुलफजल द्वारा बुलवाया सिरिजी अपने तेरह साधुओं के साथ दरबार में पधारे । अद्भत फकीर के रूप में आते हुए गुरुदेव को देखते ही बादशाह ने सविनय सिर झुकाकर नमन पूर्वक शिष्टाचार के साथ गुरुराज के पीछे अपने दरबार में जाने के लिए कदम उठाया । महल में जाने पर बादेशाह ने रत्नजड़ित सिंहासन प्ररा सूरिंजी से बैठने की प्रार्थना का इस पर सुरिजा ने कहा कि प्रायः इक ना कोई चीटी आदि सूक्ष्म जीव हो तो वजन से मर न जाये, इसलिए जैन शास्त्रों में केवली सर्वज्ञों ने हिसावादियों के लिए वस्त्राच्छादित जगह पर पांव रखने की भी मनाही की है। हमारा आचार है कि चलना हो, बैठना हो तो अपनी नजर से देखकर चलना बैठना जिसमें त्रिी जीव को दुख न हो । धर्मशास्त्र भी फरमाते हैं "दृष्टि पूतं समेत पांटम"
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मनुस्मृति में भी लिखा है कि "शरीर पीड़ित होने पर भी दिन में व रात्रि में जीवों की रक्षा के लिए सदा भूमि देखकर चलना चाहिए"3
बादशाह सूरिजी की जीवों के प्रति ऐसी दया देखकर आश्चर्य चकित हुआ और मन ही मन हंसा भी कि यहां रोज सफाई होने पर इसके नीचे जीव कैसे आ सकते हैं ? ऐसा विचार करते ही गलीचे को एक तरफ से थोड़ा उठाया। तो बहुत सी चींटियां दिखाई दीं उन्हें देखते ही बादशाह घोर आश्चर्यचकित रह गया । उसके बाद स्वर्णमयी कुर्सी पर बैठने के लिए आग्रह किया तो सुरिजी ने
1. जगदगुरु हीर-मुमुक्षु भव्यानन्दजी पृष्ठ-52 2. भानुचन्द्र गणिचरित भूमि का लेखक अमरचन्द्र भंवरलाल नाहट
पृष्ठ 6 3. संरक्षणार्थ जन्तूनां रात्रावहनि वा सदा।
शरीरस्थास्थये चैव समीक्ष्य वसुधांचरेत । मनुस्मृति संस्कृत टीका पं. रामेश्वर भट्ट अध्याय 6 श्लोक 68
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