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________________ ( 53 ) सागानेर पधार चुके हैं । बादशाह ने मुनियों का स्वागत कर उनके साधू-स्वभाव एव त्यागी होने का कारण पूछा । यथेष्ठ उत्तर मिलने पर बादशाह सन्तुष्ट हुआ और उनके गुरु हीरविजयसूरिजी से मिलने की इच्छा और भी तीव्र हो गई । बादशाह का मन्तव्य जानकर मुनियों ने कुछ श्रावकों को सूरिज़ी के पास भेजा कि बादशाह सूरिजी के दर्शन और धर्मोपदेश सुनने के लिए चातक पक्षी की तरह आतुर है कोई अन्य कार्य नहीं है । ज्येष्ठ सूदी तेरस सम्वत् 1639 (सन् 1582) को सूरिजी फतेहपुर सीकरी पहेचे । अब सूरिजी सिंह द्वार पर थे अबुलफजल ने बादशाह को यह शुभ समाचार सुनाया कि सभी तक सय जिनमे मिलने की उत्कण्ठा में थे, वे ही आज पधार चुके है। लेकिन शायद कुछ कार्य व्यवस्था या अन्य किसी कारण से अकबर ने उस समय सूरिजी से भेंट करने में असमर्थता जाहिर की। उस दिन की सूरिजी की सारी व्यवस्था की जिम्मेदारी अबुलफजल को सौंप दी गई ।... यहां एक प्रश्न उतना स्वाभाविक है कि जिनसे मिलने के लिए अकबर तक पक्षी की तरह आतुर था बही जब फतेहपुर में सिंह द्वार तक आ जाते ते हैं तो बादशाह कार्य व्यस्तता का बहाना कर मिलने से इन्कार कर देता है खिर ऐसा क्या कारण हो सकता है ? ऐसा लगता है कि यह बादशाह के दरा ब्यसन का परिणाम था क्योंकि इसी व्यसन के कारण अनेक अविवेकी वहार हो जाते हैं और बादशाह में यह दुर्गुण था कि जब उसे मदिरापान की छा होती थी तब वह महत्वपूर्ण कार्यों को छोड़ देता था, यहां तक कि चाहे तनी भी ऊंची श्रेणी के मनुष्य को मिलने के लिए बुलाया होता तो उससे भी मिलकर अपनी शराब पीने की इच्छा को पूर्ण करता था। इसलिए उस दिन दशाह सूरिजी से न मिल सके स्मिथ ने लिखा है-"बादशाह को उनसे रविजयसूरिजी से) वार्तालाप करने का अवकाश मिला तब तक बे अब्लफजल के । बैठाये गये थे" Ans भव्यानन्दजी का कहना है अबुलफजल ने सूरिजी से कुशल क्षेम पूछने गद धर्म सम्बन्धी अनेक बातें पूछी। कुरान और खुदो के विषय में नाना र के जबाव सवाल किये जिनका उत्तर सूरिजी ने बड़ी गम्भीरता से युक्ति 8. “The weary traveller was received with all the pomp of imperial pageantry, and was made over to the care of Abul Fazl until the sovereign found leisure to converse with him." Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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