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________________ ( 52 ) ठीक नहीं है कि जिसको गरज होगी वह हमारे यहाँ आयेगा, यह विचार शासन के लिए हितकर नहीं है । संसार में ऐसे लोग बहुत ही कम हैं जो अपने आप धर्म करते हैं उत्तोमोत्तम कार्य करते हैं । धर्म इस समय लंगड़ा है, लोगों को समझा-समझाकर युक्तियों से धर्म साधन की उपयोगिता उनके हृदयों में जमा जमाकर, यदि उनसे धर्म कार्य कराये जाते है तो वे करते हैं। इसलिए हमें शासन सेवा की भावना को सामने रखकर प्रत्येक कार्य करना चाहिए। शासन सेवा के लिए हमें जहां जाना पडे वहीं निःसंकोच होकर जाना चाहिए। परमात्मा महावीर के अकाटय सिलानों का घर-घर जाकर पवार किराये सभी वास्तविक शासन सेवा होगी। "सवी जीवकरूं' शासन रसी" (संसार के समस्त जीवों को शासन के रसिक बनाऊ) इस भावना का मूल उद्देश्य क्या है ? हर तरह से मनुष्यों को धर्म का, अहिंसा धर्म का अनुरागी बनाने का प्रयत्न करना इसलिए तुम लोग अन्यान्य प्रकार के विचार छोड़कर मुझे अकबर के पास जाने की सम्मति दो, यही मेरी इच्छा है ।''1 । सन्तों महात्माओं से विचार विमर्श करने के उपरान्त जैन मुनि हीरविजयसूरि ने बादशाह सलामत के दरबार में जाना स्वीकार किया। यह भी परिलक्षित होता है कि मूर्धन्य विद्वान सन्त स्वेच्छाचारी नहीं थे यद्यपि वे अपनी रूचि अनुसार ही राजदरवार गये किन्तु जैन सघ में विचार विमर्श करने के उपरान्त अपना मत दिया। . (जैन सन्तों पर राजाश्रय का पूर्वकाल से ही प्रभाव मिलता है यहां भी सन्त मुनि धर्म के प्रसार के उद्देश्य से राजा के निमन्त्रण को स्वीकार करते हैं ।) सूरिजी के उपदेश को सुनकर सभी ने उन्हें हर्ष पूर्वक जाने की अनुमति दे दी। Pandu . RUPHASHAre सूरिजी मार्ग शीर्ष कृष्णा सप्तमी सम्वत 1638(सन् 1581) को गन्धार से बिहार कर अहमदाबाद आये अहमदाबाद पहुंचने पर वहां के सूबेदार माहब खो में सम्राट द्वारा लिखे गये पत्र के आदेशानुसार उन्हें वे सभी चीजे भेंट करनी चाही लेकिन मूरिजी ने जैन धर्म के अपरिग्रह व्रत के नियमानुसार मी...कुन ग्रहण करने से इन्कार कर दिया। कुछ दिन अहमदाबाद में रुककर फतेहपुर सीकरी की ओर बिहार कर दिया । फतेहपुर सीकरी पहुंचने से पहले सूरिजी सांगानेर के उपाश्रय में ठहरे। उनके साथ के प्रमुख मुनियों ने सूरिजी को वहीं छोड़कर, बादशाह का मन्तव्य जानने के लिए सीकरी की ओर बिहार किया और वहां पहुंचकर यह सन्देश दिया कि सूरिजी बादशाह के आमन्त्रण पर RecemenXSARighwa jTAINGINE awaraveena - 1. सूरीश्वर और सम्राट कृष्णलाल वर्मा द्वारा अनुदित पृष्ठ 90-91 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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