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तृतीय अध्याय
अकबर का जैन आचार्यों एवं मुनियों से सम्पर्क तथा उनका प्रभाव
शिया और सुनियों के पारस्परिक वाद-विवाद, आरोप-प्रत्यारोप तथा द्वेष पूर्ण संघर्ष के कारण इस्लाम धर्म पर से अकबर की रूचि हट गयी। पर फिर भी वह, यही चाहता था कि किसी प्रकार से उसे धार्मिक तत्व की बातें मालूम हों, फलतः उसने 3 अक्टूबर 1578 को हिन्दू, जैन, ईसाई, यहूदी, सूफी, पारसी विद्वानों एवं सन्तों के लिए इबादतखाने का द्वार खोल दिया । अकबर ने इबादतखाने में अपनी सभा के सदस्यों को पांच भागों में विभक्त किया था"। उनमें कुल मिलाकर 140 सदस्य थे" प्रथम वर्ग में वे लोग थे, जो कि दोनों लोकों का रहस्य जानते थे । दूसरे वर्ग में मन और हृदय के ज्ञाता थे, तीसरे वर्ग में धर्म और दर्शन शास्त्र के ज्ञाता चौथे वर्ग में दार्शनिक तथा पांचवे वर्ग में वे लोग थे, जो कि परीक्षणों तथा पर्यालोचनों पर आश्रित विज्ञान के जानने वाले थे । इन सम्पूर्ण वर्गों में अबुलफजल ने तीन जैन विद्वानों के नाम गिनाये है :
, आचार्य श्री हीरविजय सूरि । 2 विजयसेन सूरि । 3. भानूचन्द्र उपाध्याय ।
प्रथम वर्ग के 16 वें स्थान पर हरिजी सूरि नाम अंकित है ये हरिजी सूरि को ही हीरविजय सूरि के नाम से जाना जाता है, (जिनका विवेचन हम अगले पृष्ठों में करेंगे।) 1. होरविजय सूरि
(पहले हम यह देखेंगे कि अकबर आचार्य हीरविजय मूरि जी के सम्पर्क में कैसे आया।)
1. सूरीश्वर और सम्राट विद्या-विजयजी हिन्दी अनुवादक कृष्णलाल वर्मा
पृष्ठ 78 2. आइने अकबरी एच, ब्लाँचमेन द्वारा अनुदित पृष्ठ 607-617
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