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________________ ( 49 > जबाव मिला कि यह श्राविका सुन्दर वस्त्र सम्पूर्ण जैन साहित्य में इस घटना का विवरण मिलता है; कि अकबर राजमहल में बैठा मन्त्रियों से विचार-विमर्श कर रहा था, उसी समय सामने से महीरविजयसूरिजी की जय हो" के नारे लगाता हुआ एक जुलूस निकला अकबर आश्चर्य से टोडरमल से इस बारे में पूछा तो उसे जुलूस जैन धर्म वालों का है जिसमें चम्पा) नाम की एक धारण कर पालकी में बैठ भगवान के दर्शन के लिए मन्दिर में जा रही है । उसने 6 महीने के उपवास किये है जिनमें केवल गर्म जल पीने के सिवाय कुछ भी नहीं खाया और वह गर्म जल भी केवल दिन में ही पीती है रात्रि में तो मुंह में कुछ भी नहीं डालती उसके उपवास का यह 5 वां मास हैं। आज जैन धर्म का कोई विशेष पर्व होने के कारण वह उत्सव के साथ मन्दिर जा रही है । बादशाह को भला इतनी कठोर तपस्या पर कैसे विश्वास आ सकता था • अपने सन्देह की पुष्टि के लिए अपने अनुचरों को पालकी ऊपर ले जाने की आजादी बादशाह की आज्ञा से जैन समुदाय भयभीत होने लग गया लेकिन कर क्या सकता था ? आखिर पालकी को ऊपर ले जाया गया । बादशाह ने कुतूहलता से चम्पा बहन की आकृति की परीक्षा की । यद्यपि उसके तेजस्वी मुख को देखकर तपस्या के विषय में काफी कुछ सत्यता प्रतीत होने पर भी उसकी पूरी परीक्षा करने के लिए एक मास तक अपने एकान्त महल में रहने की आज्ञा दी और अपने सेवकों को उसकी सारी दिनचर्या का बड़ी सावधानी से अवलोकन करने को कहा । चम्पा बहन के लिए एक मास निकालना कौन सी बड़ी बात थी ? समय निकला, सेवकों की दृष्टि में उसका निर्मल आचरण सामने आया । सेवकों द्वारा जब बादशाह को चम्पा बहन के पवित्र आचरण का पता चलता तो बादशाह आश्चर्य चकित हो गया। उसने स्वयं चम्पा बहन से पूछा कि तुम इतनी कठोर तपस्या क्यों और किसके प्रभाव से करती हो ? उसने जबाव दिया कि तप आत्म कल्याण के लिए और आत्मज्ञानी तपागच्छ नायक श्री हीरविजयसूरि बुरुदेव के अनुग्रह से करती हूँ बस यहीं से अकबर के मन में हीरविजयसूरि के वनों की जिज्ञासा हुई । सूरिजी के बारे में फकीर हैं, वे हमेशा पैदल अकबर ने गुजरात प्रदेश में रह चुके एतमादखां से पूछा तो उसने जबाब दिया "हां हुजूर जानता हूं, वे एक सच्चे इक्का, नाड़ी, घोड़ा आदि किसी भी सवारी में नहीं बैठते है । वे ही एक गांव से दूसरे गांव जाते हैं। पैसा नहीं रखते, औरतों से बिल्कुल दूर रहते हैं और अपना सारा समय खुदा की बन्दगी में और लोगों को धर्मोपदेश देने में गुजारते है। इस तरह एतमादखां से सूरिजी की प्रशंसा सुनकर जैसे 1. सूरीश्वर और सम्राट कृष्णलाल वर्मा पृष्ठ 81 पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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