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________________ ( 46 ) के विरोधी मतों में से किसी एक को स्वीकार करे तथा मतभेद विहीन मामलों पर किसी भी नीति को निर्धारित करे बशर्ते कि वह कुरान विहित न हो । इस प्रकार अब अकबर ने स्वयं वह अधिकार प्राप्त कर लिये जो अब तक उलेमाओं के माने जाते थे इससे उत्माओं ने अपना असन्तोष प्रकट किया और अकबर पर fafभन्न आरोप लगाये । बदायूँनी ने तो यहां तक लिखा है कि "अकबर ने नमाज वर्जित कर दी थी उसने दरबार में नमाज पढ़ना निषिद्ध कर दिया था । दरबार-ए-आम में अजान बन्द करवा दी थी, जो कि पाँच समय पढ़ी जाती थी । उसने लोगों को अपने स्वयं तथा अपने बच्चों के लिए मुहम्मद और अहमद नाम रखने की मनाही कर दी थी। क्योंकि वह मुहम्मद के नाम से घृणा करने लगा था इसलिए जहां-जहां पैगम्बर मुहम्मद का नाम आता था । वहां-वहां उसने नाम परिवर्तित कर दिये " " । इस तरह के अनेक आरोप बदायूँनी ने लगाये । यद्यपि उनमें से कुछ तो बिल्कुल ही निराधार है । बदायूंनी कट्टर मुसलमान था हो सकता है उसने अकबर की आलोचना के लिए ऐसा fara दिया हो । लेकिन इतना निश्चित है कि कट्टर इस्लाम में बादशाह का विश्वास हिल गया था। इसलिए तो उसने इबादतखाने के द्वार सब धर्मो के विद्वानों के लिए खोल दिया था । विभिन्न धर्माचार्यों से अकबर का सम्पर्क और उनका प्रभाव - बादशाह ने इबादतखाने का द्वार सन् 1578 से दूसरे धर्म सम्प्रदायों जैसे हिन्दू, पारसी, ईसाई के लिए भी खोल दिया । यद्यपि इबादतखाने में विचार विमर्श होते ही रहे किन्तु अकबर ने अन्य मतों और सम्प्रदायों के विद्वानों को बुलाकर निजी बैठकें आयोजित करनी आरम्भ कर दी। मौलाना मुहम्मद हुसैन लिखते हैं कि "बादशाह अपने दिल में यहीं चाहता था कि किसी प्रकार मुझे धार्मिक तत्व की बातें मालूम हों, बल्कि वह उनकी छोटी-छोटी बातों का भी पूरा पता लगाना चाहता था इसलिए वह प्रत्येक धर्म के विद्वानों को एकत्र करता था । और उनसे सब बातों का पता लगाया करता था । इन बैठकों में विद्वान लोग बड़ी गम्भीरता और शान्ति से धर्म चर्चा करते थे इससे बादशाह को बहुत आनन्द होता था अबुलफजल लिखता है - "शहंशाह का दरबार सातों प्रदेशों ( पृथ्वी के भागों ) के पूछताछ करने वालों का घर तथा प्रत्येक धर्म व सम्प्रदाय के विद्वानों का सभा कक्ष बन गया था । 1. अलबदायूंनी डब्ल्यू. एच. लाँ द्वारा अनुदित भाग 2 पृष्ठ 324 2. अकबरी दरबार हिन्दी अनुवाद रामचन्द्र वर्मा पृष्ठ 76 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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