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________________ ( 45 ) तात्पर्य यह है कि इस प्रकार के विरोध, झगड़े और आत्माभिमान आदि की कृपा से बहुत से तमाशे देखने में आये । इसी प्रकार की एक अन्य घटना बदायूनी लिखता है कि "यह सुनने पर कि हाजी इब्राहीम ने पीली और लाल रंग की पोशाकें पहनने को न्याय संगत घोषित करते हुए फतवा दिया है। मीर आदिल सैयद मुहम्मद की उपस्थिति में उसे धूर्त मक्कार कहा और उसे मारने के लिए अपना डन्डा उठा भी लिया"1 । इस प्रकार के झगड़ों से कट्टर इस्लाम में बादशाह का विश्वास हिल गया। इस्लाम धर्म के प्रति अकबर का दृष्टिकोण इबादतखाने में ऐसे अशिष्ट, संकीर्ण, धर्मान्ध, उद्दण्ड और उत्तरदायित्वहीन व्यवहार तथा झगड़ों से अकबर बहुत ही खिन्न हुआ । सन् 1578-79 के बाद 'अकबर के मन में इन उल्माओं के चरित्र और धर्म के प्रति किंचित भी श्रद्धा नहीं रही थी। उसने अनुभव किया कि इन उल्माओं में जिन पर कि बुद्धि का सिर्फ कलेवर ही है, सत्य को खोजने और जानने की पिपासा नहीं है उसने इस्लाम के विद्वानों में ही भेद-भाव, संकीर्णता और कटुता पाई अतः धीरे-धीरे इस्लाम पर से उसका विश्वास उठने लगा। अतः बादशाह ने स्वयं को कट्टर धन्धि मुल्लाओं के हानिकारक प्रभाव से स्वतन्त्र करने का निश्चय किया। इसके लिए उसने दो ठोस कदम उठाये एक तो खुतबा पढ़ना । और दूसरा अभ्रान्त आज्ञा पत्र अथवा महार प्रसारित करना। शुक्रवार 22 जून 1579 को फतेहपुर सीकरी की प्रमुख मस्जिद की वेदी पर चढ़कर अकबर के कवि फजी द्वारा कविता में रचित खुतबा पढ़ा जिसके अन्त में "अल्ला-हु-अकबर" शब्द थे । इस शब्द के दो अर्थ निकलते हैं एक तो यह कि अल्लाह सबसे बड़ा है और दूसरा अकबर ही अल्लाह है बादशाह के विरोधियों ने दूसरे अर्थ को ही सही मानकर कट्टर मुसलमानों को बादशाह के विरुद्ध भड़काना प्रारम्भ कर दिया। सितम्बर 1579 में बादशाह ने महजर अथवा अभ्रान्त आज्ञा पत्र पढ़ा इस पत्र से अकबर को यह अधिकार प्राप्त हो गया कि वह मुस्लिम धर्मशास्त्रियों 1. अलबदायूनी डब्ल्यू. एच. लॉ द्वारा अनुदित भाग 2 पृष्ठ 214 2. अलबदायूनी डब्ल्यू. एच. लॉ. द्वारा अनुदित भाग 2 पृष्ठ 277 3. वही पृष्ठ 279-80 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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