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________________ ( 42 ) दारों में 14 मनसबदार हिन्दू थे, 200 अश्वारोहियों के 415 मनसबदारों में 15 मनसबदार हिन्दू थे और साम्राज्य के विभिन्न प्रदेशो के 12 दीवानों में 8 दीवान हिन्दू थे । बदायूनी लिखता है कि हिन्दुओं के मुकद्दमें करने के लिए उसने (अकबर) हिन्दू न्यायाधीशों की नियुक्ति की।" बादशाह का विचार था कि राजा को न्यायप्रिय और निष्पक्ष होना चाहिये । इसलिए उसने बिना किसी भेद भाव के सभी वर्गों और सम्प्रदायों के व्यक्तियों के साथ समान न्याय और निष्पक्ष व्यवहार के सिद्धान्त को अपना लिया। अन्य जातियों पर इस्लाम के कानूनों के अनुसार शासन करने की नीति त्याग दी। 8. इस्लाम के सिद्धान्तों का प्रमाणिक ज्ञान प्राप्त करने के प्रयास एक ओर तो अकबर ने हिन्दओं पर लगे अनेक अनुचित प्रतिबन्ध हटाये और हिन्दू मुस्लिम एकता स्थापित करने का यथाशक्ति प्रयास किया, किन्तु साथ ही साथ दूसरी ओर वह सत्य धर्म की खोज में लगा ही रहा वह इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों का प्रमाणिक ज्ञाम प्राप्त करना चाहता था । इसके लिए उसने शेख अब्दुन्नवी और मखदूम-उल-मुल्क अब्दुल्ला सुल्तानपुरी जैसे विद्वान मुल्लाओं की शागिदी की । सन् 1574 तक वह इनके प्रभाव में रहा। इस वर्ष तक वह इस्लाम के नियमों का पालन मजबूती से करता था। बदायूनी का भी मत है कि सन् 1574 तक सम्राट अकबर नियमित रूप से नमाज पढ़ता रहा और सलीम चिश्ती जैसे प्रसिद्ध मुस्लिम पीरों के मकबरों के दर्शन करने भी कई बार गया वह अपने युग के प्रसिद्ध मौलवियों का भी उचित सम्मान करता रहा अकबर ने शेख अहमद के पुत्र शेख अब्दुन्नबी को मुख्य सद्र (धर्म व दाम मन्त्री) नियुक्त किया और वह सन् 1578 तक इसी पद पर रहा । सद्र को धर्माचार दाम तथा न्याय विभाग का अध्यक्ष रखा गया। एक अन्य स्थान पर बदायूनी लिखता है कि "अकबर शेख के घर हदीस (महम्मद साहब के कथन) पर वार्सा सुनमे जाया करता था। कई बार तो सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने के उद्देश्य से अकबर उसके सामने नंगे पांव खड़ा हुआ" | पर रूढ़िवादी सुश्री धर्म उसे पूर्ण सन्तोष नहीं दे सका अतः वह शिया धर्म की ओर उन्मुख हुआ। उसने शिय धर्म के प्रमुख मुल्ला याजदी को अपना मित्र बनाया । याजदी ने उसे शिया धम के सिद्धान्त समझाये और उसे शिया बनाने का भरसक प्रयत्न किया पर वह भी उसके उदार हृदय को आकर्षित न कर सका। इसके बाद वह सूफी मत की ओ __ 1. अलबदायूंनी डब्ल्यू. एच. लॉ द्वारा अनुदित भाग 2 पृष्ठ 206-207 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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