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________________ ( 43 ) अका । सूफी विद्वान शेख मुबारक तथा उनके दोनों पुत्रों फैजी व अबुलफजल तथा अन्य सूफी विद्वान मिर्जा सुलेमान से उसे सूफी मत से अवगत कराकर सूफी सम्प्रदाय की ओर आकर्षित किया। 9. इबादत खाने की स्थापना और इस्लाम धर्म पर वाद-विवाद समस्त सम्प्रदायों का गहन ज्ञान प्राप्त करने के लिए अकबर ने फतेहपुर सीकरी में इबादतखाना अथवा प्रार्थना ग्रह बनवाया अपने मुसलमान दरबारियों तथा उल्माओं के साथ बादशाह यहां आकर सभा करता था इस प्रकार सत्य का विकास होने लगा । धार्मिक सभायें रात-रात भर और कभी-कभी दूसरे दिन प्रातः और दोपहर तक चलती थी जिससे पता चलता था कि किसमें तर्क है ? कल्पना है ? बुद्धि है ? इन सभाओं में दर्शन, धर्म, कानून और सांसारिक सभी प्रकार के विषयों और समस्याओं पर चर्चायें होती थी। . मखदूम-उल-मुल्क की उपाधि से विभूषित शेख अब्दुला, सुल्तानपुरी काजी, याकूब, मुल्ला बदायूंनी हाजी इब्राहीम, शेख मुबारक, अबुलफजल आदि प्रमुख विद्वान इसमें भाग लेते थे । इन विचार गोष्ठियों में विशेष गुण, बुद्धि व प्रतिभा प्रदर्शित करने वालों को अकबर सोने चादी के सिक्के देकर पुरस्कृत करता था। किन्तु धीरे-धीरे इन धामिक और दार्शनिक चर्चाओं के समय शेखों, सैयदों और उल्माओं की असहनशीलता, अनुशासनहीनता, सामान्य बुद्धि का अभाव, अनुदार, साम्प्रदायिकता, धर्मान्धता, अभद्रता तथा अहकार का खुला प्रदर्शन होने लगा मखदूम उल-मुल्क और अबुन्नबी इस्लामी धर्म शास्त्र सम्बन्धित सैद्धांतिक प्रश्नों पर परस्पर लड़ बैठते थे। मल्ला अन्दुल कादिर बदायूनी ने वे सब पुस्तकें पढ़ी थीं, जिन्हें पढ़कर लोग विद्वान हो जाते हैं। जो कुछ गुरुओं ने बतला दिया था, वह सब उन्हें अक्षरशः याद था, लेकिन धर्माचार्य के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है आचार्य का काम तो होता है कि जहां कोई आयत या मन्त्र न हो, या कहीं किसी प्रकार का पन्देह हो, या किसी अर्थ के सम्बन्ध में मतभेद हो, वहां वह बुद्धि से काम लेकर निर्णय करें, लेकिन मुल्ला बदायूनी में ये सब बातें नहीं थी इसी तरह शेख अबुलफजल की झोली में तर्को की क्या कमी थी और उनकी ईश्वरदत्त प्रतिभा के सामने किसी की क्या सामर्थ्य ? जिस तर्क को चाहा चुटकी में उड़ा दिया विद्वानों विरोध का मार्ग तो खुल ही गया था। थोड़े ही दिनों में यह नौबत आ गई धामिक सिद्धांत तो दूर रहे जिन सिद्धांतों का सम्बन्ध केवल विश्वास से था सन पर भी आक्षेप होने लगे और हर बात में तुर्रा यह कि साथ में कोई तर्क और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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