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करते थे । अब राजकोष में हजारों-लाखों रुपये पड़े हैं, बल्कि साम्राज्य का एकएक सेवक आर्थिक दृष्टि से आवश्यकता से अधिक सुखी है फिर विचारशील और न्यायी मनुष्य कोड़ी-कोड़ी चुनने के लिए अपनी नीयत क्यों बिगाड़ें। एक कल्पित लाभ के लिए प्रत्यक्ष हानि करना ठीक नहीं आदि-आदि कहकर जजिया रोका गया"" 1
इसकी समाप्ति का समाचार जब घर-घर पर पहुंचा तो सब लोग अकबर को धन्यवाद देने लगे | जरा सी बात ने लोगों के दिलों और जानों को मोल ले लिया । यदि हजारों आदमियों का रक्त बहाया जाता और लाखों आदमियों को गुलाम बनाया जाता तो भी यह बात नहीं हो सकती थी । अबुलफजल लिखता हैं - " जजिया, बन्दरगाह का महसूल, यात्री कर अनेक प्रकार के व्यवसायों पर कर, दरोगा की फीस, तहसीलदार की फीस, बाजार का महसूल, विदेश यात्रा कर, मकान के क्रय विक्रय का कर शोरा पर कर सारांश यह है कि ऐसे तमाम कर जिनको हिन्दुस्तानी लोग सैर जिहात कहते है, बन्द कर दिये गये ।"
6. गैर मुसलमानों को धार्मिक स्थान निर्मित करवाने की स्वतन्त्रता
• विभिन्न अनुचित करों की समाप्ति के पश्चात् बादशाह ने पवित्र धार्मिक स्थानों पर लगे सब प्रतिबन्धों को निरस्त कर दिया । फलतः हिन्दू सामन्तों और राजपूत सरदारों ने अपने मन्दिर, देवालय तथा ईश्वर के विभिन्न अवतारों के पवित्र देव स्थान बनवाने प्रारम्भ कर दिये राजा मानसिंह ने अत्यन्त सुन्दर और भव्य भवन निर्मित करवाये एक तो वृन्दावन में गोविन्ददास का लाल पत्थर का विशाल पांच मजिला मन्दिर और दूसरा वाराणसी में । उसने सिक्खों के गुरु रामदास को एक भूमि खण्ड जीवन निर्वाह के लिए दिया । इसी भूमि खण्ड में गुरु रामदास ने जल का छोटा तालाब खुदवाया और तब से यह स्थान अमृतसर ( अमृत का तालाब ) कहा जाता है। अमृतसर में सिक्खों ने एक गुरुद्वारा भी बनवाया । हीरविजय सूरी और भानुचन्द्रजी के प्रयत्नों से बादशाह ने फरमान प्रसारित किये जिनके द्वारा जैन समाज को शासन की ओर से कुछ विशेष सुविधायें दी गई । गुजरात के सूबेदार को यह आदेश दिया गया कि उस राज्य में किसी को भी जैन मन्दिरों में हस्तक्षेप न करने दिया जाये । उनके जीर्णोद्धार में कोई बाधा न डाले तथा अर्जुन उनमें निवास नहीं करें। एक अन्य फरमान के अनुसार मालवा, गुजरात, लाहौर, मुलतान, बंगाल तथा कुछ अन्य प्रान्तों
1. अकबरी दरबार हिन्दी अनुवाद रामचन्द्र वर्मा,
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भाग 1 पृष्ठ 144-45
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