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________________ तीन ग्रेड (स्तर) 48, 24 तथा 12 दिरम के समकक्ष था"। इस्वी सन को चौदहवीं और पन्द्रवी शताब्दी मैं भी फिरोजशाह तुगलक कानून बनाया था कि ग्रहस्थों के घरों में जितने बालिग मनुष्य हों उनसे प्रति शक्ति धनियों से 40, सोमान्य स्थिति वालों से 20, और गरीबों से 10 टांक जिया प्रतिवर्ष लिया जाये । आगे भी यानि जिस सोलहवीं शताब्दी की हम बात कहना चाहते हैं उसमें भी जजिया भौजद था। यद्यपि कर की रकम कोई ज्यादा थी लेकिन यह कर हिन्दू धर्म पर इस्लाम की श्रेष्ठता को प्रदर्शित करता था जो हिन्दुओं के लिए लज्जाजनक था। सिंहासन पर बैठते ही पहले वर्ष अकबर के मन में जजिया माफ कर देने का विचार उठी थी । पर उस समय उसकी युवावस्था कम थी, कुछ तो लॉपरवाही और कछ अधिकार के अभाष के कारण उस समय यह कर समाप्त हो न सका। सन् 1562 मैं अकबर के हाथ में सर्वसत्ता आ गई थी, अतः अकबर ने सर्वस्वीकृत इस्लामी रिवाजों की उपेक्षा करके मुसलमान मन्त्रियों और पदा. धिकारियों तथा कट्टर मुस्लिम नेताओं व उल्माओं के कड़े विरोध के बावजूद 13 मार्च 1564 को जजिया कर की समाप्ति के आदेश प्रसारित कर दिये और सम्पूर्ण साम्राज्य में जजिया कर बन्द कर दिया गया। बड़े-बड़े मुल्लाओं और मौलवियों को इससे बड़ी आपत्ति हुई लेकिन अकबर ने कहा कि "प्राचीन काल में इस सम्बन्धे में जो निश्चय हुमा था, उसका कारण यह था कि उन लोगों ने अपने विरोधियों की हत्या करमा और उन्हें लूटना ही अधिक उपयुक्त समक्षा ..."इसलिए उन्होंने एक कर बाँध दिया और उसका नाम जजिया रख दिया अब हमारे प्रजापालक और उदारता आदि के कारण दुसरे धर्मों के अनुयायी भी हमारे सहधमियों की ही भांति हमारे साथ मिलकर हमारे लिए जान देने को तैयार रहते हैं। ऐसी दशा में यह कैसे हो सकता है कि हम उन्हें अपना विरोधी समझकर प्रतिष्ठित करें और उनका नाश करें"..."जजिया लेने का प्रमुख कारण था कि पहले के साम्राज्यों का प्रबन्ध करने वालों के पास धन और माँसारिक पदार्थों को कमी रहती थी और वे ऐसे उपायों से अपनी बाय की वृद्धि nuama extincoun 1. The tax had been originally institutied by the Khalif Omar, who fixed it in there grades of 48, 24 and 12 dirhams respectively. स्मिथ अकबर द ग्रेट मुगल पृष्ठ 66 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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