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________________ ( 38 ) अथवा कर्मी हिन्दुओं के सभी पवित्र स्थानों पर तीर्थ यात्रियों से लिया जाता है अकबर ने अनुभव किया कि हिन्दुओं की आराधना करने के ढंग पर उनसे धन मांगना या उनकी आराधना में रुकावट डालना अनुचित है । बादशाह ने अपनी बुद्धिमता, उदारता से प्रेरित होकर यह बन्द कर दिया। उसने समझा कि इस प्रकार धन संग्रह करना पाप है। अकबर ने कहा "जो लोग अपने सृजनकर्ता ईश्वर की पूजा के लिए तीर्थ स्थानों पर एकत्रित होते हैं, उनसे कर वसूल करना ईश्वर की इच्छा के सर्वथा विरुद्ध हैं, चाहे उनकी पूजा की विधि पृथक ही क्यों न हो। फलस्वरूप अकबर ने अपने सम्पूर्ण साम्राज्य में तीर्थ यात्रा कर बसूल न करने के आदेश प्रसारित कर दिये" एक अन्य स्थान पर अबुलफजल ने यह भी लिखा है कि-"बादशाह प्रायः कहा करता था कि चाहे कोई गलत धर्म के मार्ग पर चलता हो परन्तु यह कौन जानता है कि उसका मार्ग गलत ही है। ऐसे व्यक्ति के मार्ग में बाधा उत्पन्न करना उचित नहीं है ।" तीर्थ यात्रा कर की समाप्ति अकबर की धार्मिक उदारता और सहिष्णुता को ज्वलन्त उदाहरण है। करोड़ों रुपयों की आय होने पर भी बादशाह ने इसे केवल अपनी धार्मिक सहिष्णुता के कारण समाप्त कर दिया। 5. नजिया कर का उन्मूलन जजिया की उत्पत्ति भारत में कब हुई ? इसका यद्यपि निश्चित समय निर्धारित नहीं किया जा सकता तथापि कुछ विद्वानों का कहना है कि आठवीं शताब्दी में मुसलमान बादशाह कासिम ने भारतीय प्रजा पर यह कर लगाया था। पहले तो उसने आर्य प्रजा को इस्लाम ग्रहण करने के लिए विवश किया और प्रजा ने अटूट धन-दौलत देकर अपने आर्य धर्म की रक्षा की । फिर हर साल ही वह प्रजा से रुपया वसूल करने लगा, प्रतिवर्ष जो द्रव्य वसूल किया जाता था, उसका नाम जजिया था। कुछ काल पश्चात् यहां तक हुक्म जारी हो गये थे कि आय प्रजा के पास खाने-पीने के बाद जो शेष धन माल बचे वह सभी जजिया के रूप में खजाने में दाखिल करवा दिये जायें। फरिश्ता के शब्दों में कहें तो "मृत्यु तुल्य दण्ड देना ही जजिय का उद्देश्य था।"ऐसा दण्ड लेकर भी आर्य प्रजा ने अपने धर्म की रक्षा की थी। स्मिथ ने इस बात के बारे में लिखा है कि "खलीफ उमर के द्वारा वास्तविक रूप से कर निर्धारित कर दिया मया था जो 1. अकबर द ग्रेट मुगल-स्मिथ-पृष्ठ 64.65 2. अकबर नामा हिन्दी अनुवाद मथुरालाल शर्मा पृष्ठ 242 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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