SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 32 ) उसके चारों ओर बड़ी-बड़ी इमारतें बनाकर उसे बढ़ाया गया। प्रत्येक जुमा (शुक्रवार) की नमाज के उपरान्त शेख सलीम चिश्ती की खानकाह से आकर इसी नई खानकाह में दरबार खास होता था। बदायूंनी लिखता है कि "उसने (अकबर) सन् 1575 में फतेहपुर सोकरी में निर्मित इबादतखाने में इस्लाम के प्रसिद्ध विद्वानों, शेखों, मौलवियों, मुफ्तियों आदि को धार्मिक विचार और वाद-विवाद के लिए आमन्त्रित किया। __ बहुत बड़े-बड़े विद्वान मौलवी आदि तथा कुछ थोड़े से चुने हुए मुसाहब वहां रहते थे। उनमें मखदूम-उल-मुल्क, अब्दुन्नबी, काजी याकूब, मुल्ला, बदायूनी, हाजी इब्राहीम, शेख मुबारक, अबुलफजल, काजी जलालुद्दीन आदि प्रमुख थे। इस इबादतखाने में ईश्वर और धर्म सम्बन्धित बातें होती थी किन्तु विद्वानों की मण्डली भी कुछ अजीब हुआ करती है। वहां धार्मिक वाद-विवाद तो पीछे होंगे पहले बैठने के सम्बन्ध में ही झगड़े होने लगे कि अमुक मुझ से ऊपर क्यों बैठा है और मैं उससे नीचे क्यों बैठाया गया ? बदायूनी लिखता है कि इस सम्बन्ध में यह नियम बा कि "अमीर लोग पूर्व की ओर, · संयद लोग पश्चिम की ओर, उलेमा दक्षिण की ओर तथा शेख (त्यागी व फकीर) आदि उत्तर की ओर बैठें" । प्रत्येक शुक्रवार की रात को बादशाह इस सभा में स्वयं जाता था वह वहां के सभासदों से वार्तालाप करता था और नई-नई बातों से अपना ज्ञान-भंडार बढ़ाता था। पर बड़े दुख की बात है कि जब मस्जिदों के भूखों को बढ़िया-बढ़िया भोजन मिलने लगे और उनके हौंसले बढ़कर उनकी इज्जत होने लगी तब उनकी आंखों पर चर्बी छा गई सब आपस में झगड़ने लगे। पहले तो केबल-कोलाहल होता था फिर उपद्रव भी होने लगे । अकबर के दरबार में रहने वाला कट्टर मुसलमान बदायूनी धर्म सभा में बैठने वाले मौलवियों में जो झगड़ा होता था उसके लिए लिखता है कि "बादशाह अपना बहुत ज्यादा वक्त इबादतखाने में शेखों और विद्वानों की संगति में रहकर गुजारता था, खास तौर पर शुक्रवार की रात में, जिसमें वह रात भर जागता रहता था, किसी मुख्य तत्व या किसी अवान्तर विषय की चर्चा करने में निमग्न रहता था उस समय विद्वान और शेख 1. वही पृष्ठ 70 2. अलबदायूनी डब्ल्यू. एच. लॉ द्वारा भाग 2 पृष्ठ 204 3. अलबदायूनी डब्ल्यू. एच. लों द्वारा अनुदित भाग 2 पृष्ठ 204 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy