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इसमझना भूम है कि सच्चाई सिर्फ इस्लाम धर्म तक है जबकि इस्लाम धर्म पेक्षाकृत, नवीन है जिसकी आयु केवल हजार वर्ष की ही होगी।
अतः अकबर को विश्वास हो गया कि विभिन्न धर्मों तथा सम्प्रदायों से भरे हुए उसके विशाल साम्राज्य में प्रेम, उदारता व सहिष्णुता के सिद्धान्त ही शान्ति जा सकते हैं। अकबर को राजनैतिक महत्वाकांक्षाए -
जिस समय अकबर गद्दी पर बैठा उस समय सारा राज्य असंगठित था। उसके पास कोई स्थायी सेना भी नहीं थी। अकबर की महत्वकांक्षा एक सुसंगठित और सुव्यवस्थित स्थाई राज्य स्थापित करने की थी। अबुलफजल के अनुसार अकबर की विजय नीति का उद्देश्य स्थानीय शासकों के निरंकुश शासन से पीड़ित प्रजा को सुख शान्ति और सुरक्षा प्रदान करना था। प्राचीन हिन्दू भादर्शों से प्रेरित होकर अकबर भी सम्पूर्ण देश को राजनैतिक दृष्टि से एक सूत्र में बांधने और प्रजाजन को सुख शान्ति तथा सुरक्षा प्रदान करने की ओर प्रयत्नशील हुआ। इसके लिए उसमै अनुभव कर लिया था कि जब तक विभिन्न धर्मो, सम्प्रदायों
और वर्गों के लोगों को एक सूत्र में नहीं बांधा जायेगा, तब तक उसका राज्य पक्का और स्थायी नहीं हो सकेगा । उसे राजपूतों व अन्य हिन्दुओं के सहयोग की आवश्यकता थी। इसलिए उसने राजपूतों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये । सेना और शासन विभाग के बड़े-बड़े पद तुर्कों के समान ही हिन्दुओं को भी मिलने लगे दरबार में हिन्दू-मुसलमान. सब बराबर-बराबर दिखाई देने लगे ।
अतएव अकबर को राजनैतिक महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए ऐसी उदारतापूर्ण, गुण प्राहक, सहिष्णु नीति अपनाने के लिए बाध्य होना पड़ा जिससे किसी धर्म वा सम्प्रदाय को चोट न पहुंचे।
10. इबादतखाने में इस्लाम धर्म के कहर नेताओं और उल्माओं के पतित परिक्ष का नान प्रदर्शन और अकबर पर उनका प्रभाव
सन् 1375 में अकबर ने फतेहपुर सीकरी में इमारत बनवाई और उसका माम "इबातदखामा" अथवा "पूजा घर" रखा । मुहम्मद हुसैन का कहना है कि यह वास्तव में वही कोठरी थी। जिसमें शेख सलीम चिश्ती के पुराने शिष्य और भक्त शेख अब्दुला नियाजी सरहिन्दी किसी समय एकान्तवास किया करते थे
1. अकबरी दरषार हिन्दी अनुबाद रामचन्द्र वर्मा का पहला भाय
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