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________________ ' 25 ' धर्म होने के अनुपयुक्त है क्योंकि मुस्लिम राज्य की बहुसंख्यक जनता हिन्दू है । उनका धर्म उत्कृष्ट है, अतः उसका विनाश नहीं किया जा सकता । इस प्रकार हिन्दुओं को शत्रु बनाकर न तो उनको नष्ट किया जा सकता था और न ही सुदृढ़ साम्राज्य का निर्माण सम्भव था । वह ऐसा साम्राज्य स्थापित करना चाहता था जो सभी जातियों के सहयोग तथा सहायता पर शासितों की सुभेच्छा व सद्भावना पर आश्रित हों, जिसमें किसी जाति धर्म ब रंग का भेद भाव न हो, जिसमें सभी जातियों को समान रूप से अधिकार प्राप्त हों तथा समान सुरक्षा, न्याय और स्वतन्त्रता प्राप्त हो । यही कारण था कि जब उसने देश का शासन अपने हाथ में लिया, तब ऐसा ढंग निकाला जिससे साधारण भारतवासी यह न समझे कि विजातीय तुर्क और विधर्मी मुसलमान कहीं से आकर हमारा शासक बन गया है इसलिए देश के लाभ और हित पर उसने किसी प्रकार का बन्धन नहीं लगाया। सभी जातियों के सहयोग से उसका साम्राज्य एक ऐसी नदी बन गया जिसका किनारा हर जगह से घाट था । इस प्रकार राजनैतिक कारणों से प्रेरित होकर अकबर ने तलवार की नोंक पर राज्य स्थापित करने और उसे चलाने तथा इस्लाम को राज्य धर्म बनाने की भावना त्याग दी तथा सभी जातियों के प्रति समान व्यवहार तथा धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई । 3. अकबर के पूर्वजों के उदार धार्मिक विचार - - यद्यपि अकबर भारत में एक विदेशी था जैसा कि स्मिथ ने भी लिखा है कि "अकबर भारत में एक विदेशी था उसकी नसों में एक बूंद खून भी भारतीय नहीं था । फिर भी वह धार्मिक मामलों में उदार था, इसका बहुत कुछ श्रेय उसके पूर्वजों की उदार धार्मिक विचारधारा को दिया जा सकता है उसके शरीर मैं तुर्क, मंगोल और ईरानी रक्त था । मातृ पक्ष की ओर अकबर चंगेज खां के वंश से सम्बन्धित था, यद्यपि चंगेज खाँ बौद्ध धर्म को मानता था, परन्तु उसे पनी प्रजा के विभिन्न धार्मिक कृत्यों में सम्मलित होने में संकोच नहीं होता था । गेज और उसके पूर्वज परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको बदल लेते थे । पतृ पक्ष की ओर से अकबर तैमूर के पक्ष से सम्बन्धित था और तैमूर चंगेजखां का भी सम्बन्धित था । तैमूर भी कभी सुनी तो कभी शिया हो जाता करता था । कबर का पितामह बाबर स्वयं तैमूर वंश का था । बाबर की माता चंगेजवंश के गोल यासक युनस की पुत्री थी। बाबर धर्मनिष्ठ और ईश्वर में पक्की आस्था रखने वाला व्यक्ति था यद्यपि वह सुनी था अकबर का पिता हुमायूं कट्टर धर्मांध से Jain Education International 1. अकबर द ग्रेट मुगल-स्मिथ - पृष्ठ 9 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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